नक्सली दुष्प्रचार से निपटने हर जिले में पुलिस की प्रदर्शनी



रायपुर । छत्तीसगढ़ पुलिस अब माओवादी-नक्सलियों द्वारा किये जा रहे प्रजातांत्रिक इकाईयों, शासन,पुलिस व अर्धसैनिक बल के विरुद्ध लगातार दुष्प्रचार से निपटने के लिए कमर कर चुकी है । नक्सलियों के भ्रामक एवं तथ्यरहित दुष्प्रचार अभियान के विरूद्ध जनजागरण के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा राज्य भर में नक्सलविरोधी प्रचार अभियान शुरू किया जा रहा है ताकि नक्सली हिंसा की वास्तविकता से सामान्य जनता परिचित हो सकें । पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन द्वारा इसकी जिम्मेदारी सभी पुलिस अधीक्षकों एवं संबंधित डीआईजी एवं आईजी को सौंपी गई है । सभी जिलों में नक्सलविरोधी प्रदर्शनी का आयोजन हेतु पुलिस महानिदेशक द्वारा एक राज्य स्तरीय आयोजन समिति का गठन भी किया गया है जिसमें ओ.पी.पाल, जी.एल.बाम्बरा, जे.पी. रथ, सुरेन्द्र वर्मा, अमर सिंह व कमलेश को रखा गया है । प्रथम चरण में सभी जिला मुख्यालय स्तर पर दो दिवसीय नक्सलविरोधी प्रदर्शनी लगायी जा रही है जिसमें नक्सली हिंसा, दमन एवं विध्वंस की तस्वीरें, स्लोगन, कविता-पोस्टर आदि प्रदर्शित होंगे । प्रदर्शनी की मुख्य सामग्री पुलिस मुख्यालय स्तर से जिलों में भेजी जा रही है। इसके अलावा हुए जिला स्तर पर भी स्लोगन और कविता पोस्टर, (हिन्दी, छत्तीसगढ़ी सहित स्थानीय भाषा में) तैयार कर उक्त प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जायेगा । नक्सली हिंसा में शहीद हुए पुलिस अधिकारियों की तस्वीरें भी प्रदर्शनी स्थल पर लगायी जायेगी । इस अवसर पर महाविद्यालयीन, शालेय स्तरीय नक्सलवाद विरोधी कविता, निबंध प्रतियोगिता का आयोजन प्रदर्शनी स्थल पर किया जायेगा । यह प्रदर्शनी अम्बिकापुर 9-10 दिसम्बर, जशपुर 13-14 दिसम्बर, रायगढ़17-18 दिसम्बर, कोरबा 20-21 दिसम्बर, बिलासपुर 27-28 दिसम्बर, दुर्ग 3-4 जनवरी, 2010 राजनांदगाँव 5-6 जनवरी, जगदलपुर 9-10 जनवरी, दंतेवाड़ा 12-13 जनवरी को आयोजित की जायेगी ।

पुलिस मुख्यालय में कौमी दिवस संपन्न

रायपुर । आज पुलिस मुख्यालय में कौमी दिवस का आयोजन किया गया जिसमें सभी वरिष्ठ अधिकारियों सहित कर्मचारियों ने भाग लिया । उक्त अवसर पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री रामनिवास ने उपस्थित प्रतिभागियों को देश की आज़ादी, एकता तथा संवैधानिक तरीकों से सभी शिकायतों के निपटारा करने की शपथ दिलायी । उक्त अवसर पर मुख्यालय के सभी आईजी, डीआईजी, एआईजी आदि उपस्थित थे ।

मानव अधिकार आयोग चिंतित

रायपुर । राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली ने छत्तीसगढ़ राज्य में अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दरमियान नक्सलियों द्वारा एक पुलिस अधीक्षक सहित 30 पुलिस कर्मियों के मारे गए जाने को चिंताजनक घटना निरूपति करते हुए कहा है कि हत्यारों के खिलाफ शीघ्र कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। ज्ञातव्य हो नक्सलियों ने अंबुश में फँसाकर २९ जांबाज पुलिस अधिकारी के साथ राजनांदगाँव के पुलिस अधीक्षक श्री चौबे को अपना शिकार बना लिया था ।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, दिल्ली के महासचिव श्री अखिल कुमार जैन ने छत्तीसगढ़ शासन के मुख्य सचिव श्री पी। जे. ओमेन को भेज अपने पत्र में कहा है कि यह इनकार नहीं किया जा सकता है कि राज्य के लिए उपलब्ध कानून के तहत पुलिस के लंबे हाथ हैं और इस तरह अपने नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का शासन लागू करने के कार्य में लगे हुए है और इस तरह से पुलिस कर्मी खुद अपने ही जीवन को उच्च जोखिम में रखकर राज्य के नागरिकों और संपत्ति की रक्षा कर रहे हैं ।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग पुलिस कर्मियों तथा अर्द्धसैनिक बलों द्वारा राज्य की सुरक्षा बनाए रखने में निभाई जा रही महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है और नक्सली आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों तथा पीड़ितों के परिवारों के लिए पर्याप्त क्षतिपूर्ति के लिए तत्काल और उचित उपाय करने के लिए जरूरत की एक गंभीर याद दिलाता है ।

सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर इस आयोग द्वारा पुलिस के कामकाज की स्थिति में सुधार किए जाने के उपायों, उनके काम के घंटे सहित - की सिफारिश की गई है - जो विश्वास पैदा करते हैं कि वे नागरिकों के जीवन और उनके मानव अधिकारों की रक्षा में लगे हुए हैं । ऐसे पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों के उनके अधिकारों को भी राज्य द्वारा विधिवत संबोधित किया जाए ।

आयोग ने उम्मीद जताया है कि नक्सलियों द्वारा मार डाले गये पुलिस कर्मियों के परिवार सभी देशवासियों की सहानुभूति के लायक है और उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा और गंभीर रूप से घायलों को पर्याप्त वित्तीय सहायता दी जाएगी ।

नक्सली घटना की देश भर के लेखकों ने की तीव्र भर्त्सनानक्सली घटना की देश भर के लेखकों ने की तीव्र भर्त्सना


रायपुर । छत्तीसगढ़ में बढ़ते हुए नक्सली घटना की भर्त्सना करते हुए देश भर के लेखकों ने मदनवाड़ा के नक्सली एंबुश में मारे गये शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि दी है । प्रख्यात कवि और आलोचक अशोक बाजपेयी ने कहा है कि इस समय नक्सलियों द्वारा कई राज्यों में लगातार जो हिंसा हो रही है उसके बारे में तमाम क्रांति धर्मी लेखक चुप्पी क्यों साधे हुए हैं यह समझ में आना कठिन है । वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति की परंपरा में ही यह चुप्पी है । 20वीं शताब्दी में हम देख आये हैं कि हिंसा और हत्या से सच्ची क्रांती नहीं होती और अगर उसके होने का कुछ देर के लिए भ्रम हो भी जाये तो उसकी परिणति भी देर सवेर हिंसा और हत्या में हीं होती है । प्रख्यात कवि चंदकांत देवताले, उज्जैन हिंसा के सभी आयामों पर प्रतिबंध लगाने की अपील करते हुए कहा है कि मौत से प्राप्त की जानेवाले सत्ता का अंत अततः मौत में होती है, वहाँ विकास मायने नहीं रखता । नक्सलवाद की जड़ों में जाकर ही इसका हल निकाला जा सकता है । केवल हिंसक वारदातों से नहीं । कोच्चि, केरल के प्रख्यात लेखक ए। अरविंदाक्षन ने मदनवाड़ा की घटना को विकास विरोधी लोगों और संगठित अपराधियों की करतूत निरूपित करते हुए कहा कि सत्ता के लिए जब भी कोई वाद या दल हिंसा का सहारा लेने लगता है वह उसी समय से लक्ष्यच्यूत हो जाता है । लोगों का विश्वास उससे किंचित भी नहीं रह जाता है । आदिवासियों के विकास के बहाने से हिंसा को कभी भी और किसी भी दृष्टि से तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए । जयपुर के गांधीवादी लेखक नंदकिशोर आचार्य ने नक्सलियों के करतूत को अहिंसा के ख़िलाफ़ और लक्ष्य से भटके हुए ऐसा हितैषी निरूपित किया है जिसे अपने लक्ष्य के अलावा अन्य सभी गतिविधियों पर ही रूचि रह गई है । मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के प्रमुख और साक्षात्कार के संपादक डॉ। देवेन्द्र दीपक ने नक्सवाद को प्रजा विरोधी अवधारणा बताते हुए विश्व आंतकवाद का एक पहलू बताया है । उन्होंने कहा है कि ऐसे हिंसक तत्वों को अस्त्र शस्त्र पहुंचाने में जिनका हाथ है उनकी भी ख़बर ली जानी चाहिए । ऐसी समस्यायें केवल राज्य, व्यवस्था के लिए ही नहीं समूची मानव जाति के लिए भी अहितकर हैं । विडम्बना कि ऐसे विचारों के प्रति भी कुछ विघ्नसंतोषी मीडियाबाज सहानुभूति रख रहे हैं, अब समय आ गया है कि ऐसे तत्वों की पहचान भी राज्य सरकारें करें । धर्मयुग के पूर्व उप संपादक मनमोहन सरल, मुंबई ने कहा है कि छत्तीसगढ़ और साथ ही लालगढ़ की नक्सली हिंसा इस स्वरूप की भर्त्सना करते हुए मैं यह सोचता हूँ कि हमें इस समय की गहराई तक जाना चाहिए । असंतोष के कारणों की मीमांसा करनी चाहिए । केवल दमन से ही समस्या का फौरी हल भले ही हो जाये पर बिना इसके मूल तक जाये इसका स्थायी समाधान नहीं हो सकता । प्रयास इसी दिशा में करने होंगे । चर्चित आलोचक द्वय श्री भगवान सिंह, भागलपुर और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक कृष्ण मोहन ने नक्सलियों द्वारा मदनवाड़ा में किये हिंसा को मनुष्य समाज के खिलाफ़ एक जघन्य षडयंत्र निरूपित करते हुए उन पर तत्काल कड़ाई से राज्य और केंद्र सरकार को निपटने का आग्रह किया है । ऐसी घटनाओं को हर विचार, हर कोण, हर दृष्टि से निंदनीय ही माना जाना चाहिए । यदि ऐसी घटनाओं को किन्ही उथले विचार के सहारे समर्थन मिलता है तो वह देश, समाज और समय के खिलाफ ही जायेगा । प्रख्यात आलोचक और कवि प्रभात त्रिपाठी, रायगढ़ ने अपने विचार रखते हुए कहा है कि प्रजातंत्र का विकल्प कोई भी हिंसक तंत्र नहीं हो सकता अतः नक्सलवाद मूलतः अपने लक्ष्य के साधनों की विश्वसनीयता खो चुका है । ऐसी घटनाओं को अराजक आक्रोश और मानवविरोधी माना जाकर उनका पूर्ण मनोयोग से जनता को जबाव देना ही होगा । शिरीष कुमार मौर्य, कवि, नैनीताल ने लिखा है कि मैं ऐसी किसी भी घटना का पुरजोर विरोध करता हूँ। विचार कहीं पीछे छूट रहा है और उसके नाम पर इस तरह का जो कुछ भी घट रहा है वह खेदजनक है। मृतकों को मेरी श्रद्धांजलि । प्रख्यात लेखक डॉ। हरि जोशी, इंदौर ने कहा है कि मदनवाड़ा की घटना को मुंबई में हुए आतंकी हमला से कम नहीं समझा जाना चाहिए । राजनांदगाँव के अपराधियों को कठोरता से जल्द से जल्द दंडित किया जाना चाहिए। रायगढ़ के कवि और आलोचक डॉ. बलदेव ने कहा है कि यह मात्र राज्य सरकार की समस्या नहीं । यह केवल पुलिस की ड्यूटी नहीं कि वह आपके छत्तीसगढ़ को नक्सली विपदाओं से मुक्त बनाये रखे । यह वक्त निर्णय लेने की घड़ी है कि आप किसका वरण करना चाहते है ? माओवादी हिंसक तंत्र का या प्रजातंत्र का । अब पानी सिर से उतर चुका है । हर बच्चा बोले, हर युवक बोले, माँएं बोले, रिक्शावाला बोले, किसान बोले, मज़दूर बोले, अधिकार बोले। बोलें कि बस्स बहुत हो चुका, सिर्फ़ पुलिस ही नहीं लड़ेगी हम लडेंगे भी और नक्सलवादियों के ख़िलाफ़ बोलेंगे भी सुशील कुमार, साहित्यकार, दुमका, झारखंड का मानना है कि नक्सली अब आंतकी का रूप ले रहे हैं। ये समाज और राष्ट्र के उसी तरह दुश्मन भी बन गये हैं। इनकी न सिर्फ़ भर्त्सना, बल्कि खात्मा के लिये सरकार और जनता, दोनों को आगे आना होगा। नक्सली अब उसी ऐशोआराम में जी रहे हैं जिस प्रकार शोषक वर्ग रहा करते हैं/थे। इनके भी बच्चे अब बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं। इनका भी काफ़ी बैंक-बैलेन्स होता है। अत: नक्सलवाद अब जनांदोलन नहीं, पेट पालने का धंधा भी है।अब हमें ये उल्लू नहीं बना सकते। आचार्य संजीव सलील, संपादक, नर्मदा, जबलपुर का विचार है कि नक्सलवाद वैचारिक रूप से पथ से भटके हिंसावादी हैं, जो किसी नीति-न्याय में विश्वास नहीं करते। शासन और प्रशासन को योजना बनाकर इन्हें समूल नष्ट कर देना चाहिए। ये न तो उत्पीडित हैं, न किन्ही सामाजिक अंतर्विरोधों का प्रतिफल। कुछ बुद्धिजीवी अपनी सहानुभूति देकर इन्हें पनपाते हैं ।

ये पौराणिक राक्षसों के आधुनिक रूप हैं जो अन्यों के मानवाधिकारों की रोज हत्या करते हैं और जब मरने लगते हैं तो खुद के मानवाधिकार की दुहाई देते हैं। आपनी साथी महिलाओं से बलात्कार करने में इन्हें संकोच नहीं होता। हिंसा पंथी कहीं भी, किसी भी रूप में हों, समूल नष्ट किये जाएँ। इनकी हर गोले का उत्तर सिर्फ और सिर्फ गोली से दिया जाना ज़ुरूरी है। सामान्य न्याय व्यवस्था नियम-कानून का सम्मान करनेवाले भद्रजनों के लिए है। आतंकवादियों को सामान्य कानून का लाभ नहीं देकर तत्काल ही गोले से मार दिया जाना चाहिए । देश के प्रख्यात गीतकार स्व। पं. नरेन्द्र शर्मा की बेटी लावण्या शाह, अमेरिका ने कहा है कि जब आदीवासी प्रजा पर अत्याचार होते हैँ तब वहाँ की दूसरी कौम चुप रहती है ? बस्तर के आदिवासियोँ की कोई मदद नहीँ करता ? ऐसा क्यूँ ? हिन्दी के चर्चित ब्लॉग लेखक जीत भार्गव ने माना है कि वामपंथियों ने हिन्दी, और हिन्दुस्तान का कबाडा किया है। वास्तविकता यह है कि भारत की अधोगति में इन प्रगतिशीलों को सुकून मिलता है। जनता के नरसंहार को यह जनवादी सही ठहराते हैं । युवा कवि राजीव रंजन प्रसाद ने लिखा है कि बस्तर और आदिवासी की समझ नहीं रखने वाले अपनी लफ्फाजियों से ही बाज आ जायें तो बडा परिवर्तन हो जायेगा। माओवादियों के समर्थक साहित्यकारों का बहिष्कार आवश्यक है। स्वीड़न निवासी रेडियो संचालक और कवि चांद शुक्ला ने माओवादी हिंसा की कटू आलोचना करते हुए इसे प्रजातंत्र के लिए ख़तरा बताया है । उन्होंने कहा है कि नक्सलवाद की समस्या मात्र छत्तीसगढ़ की समस्या नहीं अपितु समूचे भारत की समस्या है, जिससे निपटने के लिए सारे देशवासी को आगे आना पड़ेगा । कार्टूनिस्ट अजय सक्सेना, अजय श्रीवास्तव ने कहा है कि हिंसा पर उतारू नक्सलियों को सबक सिखाने का अंतिम समय आ चुका है, उनसे अब किसी प्रकार की बातचीत की संभावना क्षीण हो चुकी है ।

मदनवाड़ा नक्सली हिंसा की निंदा करने वालों में अन्य प्रमुख लेखक हैं – शिवकुमार मिश्र, खगेन्द्र ठाकुर, प्रभाकर श्रोत्रिय, गंगाप्रसाद बरसैंया, रमेश दवे, अशोक माहेश्वरी, ओम भारती, एकांत श्रीवास्तव, मुक्ता, रंजना अरगड़े, अरूण शीतांश, डॉ. बृजबाला सिंह, नंदकिशोर तिवारी, राजेन्द्र परदेसी, डॉ. नैना डेलीवाला, राजुरकर राज, नवल जायसवाल, सुशील त्रिवेदी, आनंद कृष्ण, संतोष रंजन, राम पटवा, जयप्रकाश मानस ।

23 जुलाई को शहीदों को अक्षराजंलि

रायपुर । छत्तीसगढ़ के जन-जन एवं भारतीय प्रजातंत्र की अस्मिता की सुरक्षा के लिए नक्सली एम्बुश से जूझते-जूझते शहीद हो गये राजनाँदगाँव जिल के पुलिस अधीक्षक श्री विनोद चौबे सहित 29 पुलिस जवानों को राज्य व्यापी श्रद्धांजलि दी जा रही है । इस क्रम में श्री विश्वरंजन, पुलिस महानिदेशक के मार्गनिर्देशन में राज्य के समस्त पुलिस परिवार की ओर से मुख्य श्रद्धांजलि का आयोजन दिनांक 23 जुलाई, 2009 की शाम 6 बजे शहीद स्मारक भवन, जीई रोड़, रायपुर में किया जा रहा है ।

इस आयोजन में समाज के सभी वर्गों के लोगों द्वारा छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों को लिखित रूप में श्रद्धांजलि दी जायेगी जिसे पुस्तकाकार रूप भी दिया जायेगा ।

आयोजन में साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक, स्वास्थ्य, शैक्षणिक, श्रमिक, कर्मचारी व महिला संगठनों के पदाधिकारियों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, नगर निगम पार्षदों, जिला एवं जनपद पंचायत सदस्यों, जिला कार्यालयों के प्रमुखों, वरिष्ठ अधिकारियों, पुलिस कर्मियों सहित आम नागरिकों को आमंत्रित किया गया है ।

पुलिस अब छत्तीसगढ़ी में भी स्वीकार करेगी आवेदन


रायपुर । पुलिस विभाग छत्तीसगढ़ी भाषा में भी आवेदन पत्र स्वीकार करनेवाला राज्य का पहला शासकीय विभाग बन चुका है । छत्तीसगढ़ी राजभाषा को राज्य शासन द्वारा दी जा रही प्राथमिकता और राज्य में उसके व्यवहार करनेवाले अधिसंख्यक आम जनता की सुविधा को मद्देनज़र रखते हुए यह पहल की है पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन ने । उन्होंने राज्य के सभी पुलिस महानिरीक्षकों, पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि किसी भी थाने, पुलिस अनुविभाग अधिकारी, सहित विभाग के सारे कार्यालयों में यदि कोई व्यक्ति अपनी सूचना, शिकायत, एफआईआर आदि राजभाषा छत्तीसगढ़ी (अन्य उपभाषा सहित) एवं देवनागरी लिपि में लिखकर देता है तो उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकेगा, न ही उसे हिन्दी में ही लिखकर देने के लिए बाध्य किया जा सकेगा । उन्होंने अपने आदेश में सभी अधिकारियों को यह भी निर्देशित किया है कि जिन अधिकारियों/कर्मचारियों को छत्तीसगढ़ी समझने, पढ़ने में कठिनाई होती है वे अन्य मातहत या स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा नागरिक की सहायता लेकर ऐसे पत्रों पर आवश्यक रूप से नियमानुसार कार्यवाही करें । पुलिस महानिदेशक ने विभाग के राजभाषा छत्तीसगढ़ी नहीं जानने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ी भाषा सीखने का भी परामर्श दिया है ताकि भविष्य में आम छत्तीसगढ़ी भाषी नागरिकों को भावनाओं, जानकारियों और सूचनाओं को प्रकट करने में पुलिस प्रशासन के समक्ष कोई कठिनाई न हो ।

नाईजीरियन सायबर अपराधियों को पकड़ने में पुलिस को सफलता

सावधान
जुगुल किशोर की तरह लाखों रूपये न लुटायें - विश्वरंजन

रायपुर । पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने राज्य के नागरिकों को सचेत कराया है कि मोबाइल, इंटरनेट ई-मेल के माध्यम से आने वाले संदेशों का विश्वास करके किसी विदेशी लाटरी, ईनाम के लालच में जुगुल किशोर की तरह लाखों रुपये न गँवा बैठे । उन्होंने कहा है कि बड़ी संख्या में विदेशी सायबर अपराधी देश में सक्रिय हैं जो कम पढ़े लिखे और ई-मेल, मोबाइल यूजर्स का पता लगाकर उन्हें ठगने के कई तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं । जी, हाँ छत्तीसगढ़, विश्रामपुर का जुगुल किशोर ऐसे ही सायबर अपराध का शिकार हुआ था, जिसमें लिप्त नाईजीरियन अपराधियों को छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया है । उन्होंने अपील की है कि ई-मेल या मोबाइल संदेश से अचानक मिले ऐसे किसी ईनाम, पुरस्कार के लालच या झाँसे में ना आयें एवं ऐसे संदेहास्पद ई-मेल एवं मोबाइल संदेश आने पर वस्तुस्थिति नजदीक के पुलिस थाने में या पुलिस मुख्यालय के ई-मेल prodgpcg@gmail।com पर सूचित करें ताकि ऐसे लोगों, संस्थाओं का परीक्षण कर ऐसे ठगी से बचाने में सहयोग किया जा सके ।

कहानी कुछ इस प्रकार की है । 13 मार्च, 2009 को जुगुल किशोर सिंह, वल्द श्री सत्यपाल सिंह, निवासी 1/c, विश्रामपुर, जिला कोरिया के मोबाइल नं। 99266-72062 पर आइडिया टावर से एक मैसेज आया कि वे आइडिया सिम खरीदने में लाटरी आपके नाम निकलने पर 4 लाख यूएस डालर जीत चुके हैं । इस संबंध में एक ई-मेल श्री सिंह के मोबाइल पर भेजा गया था, जिसके झांसे पर आकर जुगुल किशोर ने मोबाइल नंबर सहित तुरंत अपना जवाब भेज दिया ।

इसके बाद नेट बेस्ट बैंक यूके के डायरेक्टर Mr। John Bosco Bmegine द्वारा जुगुल किशोर से उसके पुरस्कार की राशि पार्सल से भेजने हेतु पार्सल खर्चा के रूप में 12,760 रुपये की माँग की गई । इस पर श्री किशोर द्वारा मि. जान द्वारा बताये गये एकाउंट नम्बर पर उतनी राशि भेज दी गई । इसके 3 दिन बाद दूसरे व्यक्ति Mr. Johnwhite ने मो. नं. 9873194018 से उसे सूचित किया कि वह पार्सलमैन बनकर भारत आया है तथा कस्टम ड्यूटी क्लियरेंस करने हेतु उसे 2.04 लाख रूपये अलग-अलग एकाउंट नम्बर पर जमा कराने होंगे । इस पर पुनः श्री किशोर द्वारा बताये गये एकाउंट पर 2.04 लाख रूपये जमा कर दिया गया । रुपये जमा होने पर श्री किशोर को पार्सल डिलेवरी लेने हेतु दिल्ली बुलाया गया । श्री किशोर अपने बड़े पुत्र के साथ जब दिल्ली पहुँचे तब उन्हें Mr. Ienis Barister नामक एक नाईजीरियन व्यक्ति मिला जिसने उक्त पार्सल खोलकर दिखाया । उसमें एक काला रंग का यूएस डालर पैक था । उसने श्री सिंह से कहा कि असली रूप में यूएस डालर बनाने हेतु एक केमिकल ज़रूरी है, जिसे खरीदने पर करीब 15 लाख रूपये खर्च होंगे । इसके लिए उसने आईसीआईसीआई, एसबीआई, एक्सिस बैंक के 32 विभिन्न बैंक एकाउंट्स में जमा करने हेतु कहा । विश्वास दिलाने के लिए उसने दो काला रंग के डालर को सेम्पल केमिकल से असली डालर बनाकर बताया । श्री जुगुल किशोर और उसके पुत्र को विश्वास हो जाने पर उन्होंने अपने परिचितों से सहयोग लेकर 15 लाख रूपये बताये गये खातों में जमा कर दिया । इस पर बंद बोतल में उन्हें केमिकल दिया गया जो कुछ घंटो के बाद ही स्वतः टूट गया । इसी तरह तथाकथित Mr. Jenis Barister द्वारा बार-बार केमिकल देने के नाम पर और-और रूपयों की माँग की जाती रही जिसपर जुगुल किशोर द्वारा कुल 18 लाख रूपये देने के बाद भी काला रंगवाला डालर असली डालर में तब्दील नहीं हो सका । इस बीच संबंधितों के द्वारा असली डालर बनाने के नाम पर अधिक रूपयों की माँग की जाती रही ।

अंततः परेशान होकर जुगुल किशोर ने थाना छत्तीसगढ़, कोरिया जिला अंतर्गत विश्रामपुर थाना में 15 मई, 2009 को एफआईआर दर्ज कराया गया । पुलिस द्वारा अपराध क्रमांक 95/09 के तहत आईपीसी धारा 420 के तहत मर्ग कायम किया गया । पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस अधीक्षक से मार्गदर्शन लेकर एक विशेष टीम गठित की गई जिसमें प्रभारी एएसआई प्रइमन तिवारी, फिरोज खान को दिल्ली रवाना किया गया । दिल्ली स्थित अंतरराज्यीय अपराध सेल से मिलकर मोबाइल नं. 987319401 धारक को लोकेशन पता किया गया । वह दिल्ली के मोहम्मद पुरा इलाके पर लगातार बना रहना पाया गया । पुलिस दल द्वारा जब जुगुल किशोर के साथ मोहम्मदपुरा इलाके में पतासाजी करने पर मकान नं. एफ-129 में तीन नाईजीरियन नागरिक मिले, जिन्हें देखते ही जुगुल किशोर द्वारा पहचान लिया गया और पंचनामा कर सेलेस्टिन आकोजी, युगोरजी यूजीन, चुकुम निकोलस नामक उन तीनों लाटरी अपराधियों को आईपीसी की धारा 91 के तहत नोटिस देकर उपस्थित कराया गया जिस पर तीनों ने ही लाटरी द्वारा अवैध तरीके से रूपये वसूलने का अपराध स्वीकार कर लिया गया । पुलिस द्वारा इसके साथ ही अपराध में उपयोग में लाये गये कई मोबाइल, कंप्यूटर लैपटाप, पहचान पत्र, पासपोर्ट जप्त कर लिया गया है किन्तु रकम की बरामदगी नहीं हो पाई है । रकम के बारे में आरोपियों द्वारा किसी अन्य व्यक्ति जेनिस द्वारा केन्या लेकर भाग जाने की बात बतायी गयी है । अब बचने के लिए पकड़ाये गये आरोपियों का कहना है कि वे लोग मात्र मोहरा हैं । किन्तु पुलिस द्वारा अपराध विवेचन के दौरान धारा 120 (बी), 34 जोड़कर संबंधित बैंको में संपर्क कर रूपये बरामदगी का प्रयास तेज कर दिया गया है ।

आपदा प्रबन्धन एवं पुलिस


आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में पुलिस की केन्द्रीय भूमिका है। पुलिस निरन्तर कार्य करने वाली संस्था है जिसका नेटवर्क अर्हनिश क्रियाशील रहता है। जब भी कोई आपदा घटित होती है तो इसकी सूचना प्रायः सबसे पहले पुलिस थाने को प्राप्त होती है और सूचना के सम्बन्धित को सम्प्रेषण, विभिन्न चरणों में राहत एवं बचाव कार्य में लगी विभिन्न संस्थाओं को सहयोग, घटना की विवेचना, अतिविशिष्ट लोगों की भ्रमण के दौरान सुरक्षा तथा घटना में प्रभावित व्यक्तियों की चिकित्सा एवं पुनर्वास तक पुलिस समन्वयक की मुख्य भूमिका निभाती है। इसलिए आपदा पुलिस उपमहानिरीक्षक पीएसी, प्रबन्धन में पुलिस द्वारा तैयार कार्ययोजना और उसके क्रियान्वयन के लिए किए गये अभ्यास का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आपदा प्रबन्धन में पुलिस की भूमिका को अच्छी तरह समझने के पूर्व आपदा के प्रकार, प्रकृति तथा उसके परिणामों के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।

आपदा के प्रकार
आपदा को मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता हैः-
1. प्राकृतिक आपदा
2। मानवजनित आपदा

दोनों ही प्रकार की आपदा में बड़ी संख्या में जनहानि तथा सम्पत्ति को नुकसान पहुँचता है। जहाँ तक प्राकृतिक आपदा का प्रश्न है इसे नियंत्रित करना मुश्किल है क्योंकि प्रकृति पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है। अतः इस प्रकार की आपदा को ईश्वरीय देन मानकर इससे निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार की जाती है। प्राकृतिक आपदा भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफान, महामारी आदि के रूप में हो सकती है। इसके बारे में न तो कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही इसकी विकरालता की जानकारी पूर्व से की जा सकती है। अतः इस प्रकार की आपदा से निपटने के लिए देश में उपलब्ध विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से कार्य किया जाता है।

इसके विपरीत मानवजनित आपदा प्रायः मानव भूल या यांत्रिक त्रुटि के कारण होती है जिसमें कभी तो पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो पाता है परन्तु कई बार इसका पूर्वानुमान बिल्कुल ही नहीं लगाया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप चेरनोविल आणविक दुर्घटना तथा भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनायें अप्रत्याशित थीं जिन्हें दशकों बाद भी नहीं भुलाया जा सकता है। ये पूर्णतया मानव भूल एवं लापरवाही का परिणाम थीं। मानवजनित आपदा को पर्याप्त सावधानी तथा सतर्कता के द्वारा निश्चित रूप से टाला या कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आज के युग में आतंकवाद एवं आतंकी गतिविधियों के कारण पैदा की गयी आपदायें सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आयी हैं। कुछ मानवजनित आपदाएं निम्नांकित हैं, जैसे- वायु, रेल तथा जलयान दुर्घटना, आग, विस्फोट, भवन गिरने की घटना, औद्योगिक दुर्घटना, आतंक एवं सामूहिक नरसंहार युद्ध आदि।

आपदा प्रबन्धन एवं पुलिस
आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में प्रारम्भिक कार्यवाही प्रायः स्थानीय प्रशासन एवं आकस्मिक सेवा प्रदाता संस्थाओं के द्वारा प्रदान की जाती है, हालांकि इसमें कई संस्थाएं शामिल हो सकती हैं। इसके लिए आकस्मिक सेवा प्रदाता संस्थाओं को निरन्तर तैयारी की अवस्था में रहने की आवश्यकता रहती है ताकि आवश्यकता पड़ने पर बिना किसी विलम्ब के आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके। ऐसी सभी संस्थाओं को ऐसी व्यवस्था करके रखना चाहिए ताकि सूचना मिलने पर अविलम्ब उसे क्रियाशील किया जा सके।

पुलिस को इस प्रकार की घटना की जानकारी प्रायः सबसे पहले प्राप्त होती है। अतः पुलिस को सूचना मिलते ही तुरन्त मौके पर पहुँचकर घटना के विषय में विस्तृत तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करके घटना के सम्बन्ध में जिम्मेदार अधिकारियों एवं संस्थाओं को सूचना का संप्रेषण करना, घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्य को संरक्षित रखना, घायलों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना तथा क्षेत्र में फंसे लोगों को वहाँ से सुरक्षित स्थानों पर ले जाने का कार्य करना पड़ता है। यद्यपि इस कार्य में अग्निशमन सेवा, चिकित्सालय, अन्य सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाएँ सम्मिलित रहती हैं परन्तु इनके बीच समन्वय स्थापित करने की प्रारंभिक जिम्मेदारी पुलिस की ही होती है। स्थानीय प्रशासन के स्तर पर विभिन्न संस्थाओं के कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये जिला एवं कमिश्नरी स्तर पर कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिये जिसमें विभिन्न संस्थाओं के ढांचे एवं कार्य तथा उनके उत्तरदायित्व का स्पष्ट उल्लेख हो ताकि आवश्यकतानुसार सभी एजेन्सियां एवं संस्थायें प्रभावी कार्यवाही कर सकें। इस तरह की कार्ययोजना रहने पर जनहानि तथा सम्पत्ति के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

उपरोक्त कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिये प्रत्येक जिला पुलिस को अपने पास आपदा पुस्तिका (Disaster Manual) तैयार करके रखना चाहिये जिसमें निम्नलिखित सूचनायें हों-
1. विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदा का विवरण।
2. आपदाओं के बारे में अफवाहें, जिन्हें दूर किया जाना होता है।
3. स्थानीय प्रशासन जैसे-म्यूनिसपल, पंचायत के अधिकारियों के विषय में जानकारी।
4. गांव, वार्ड, सेक्टर आदि का मानचित्र व विवरण।
5. स्थानीय प्रशासन के पदाधिकारियों का उत्तरदायित्व।
6. गैर-सरकारी संगठनों की सूची तथा उनके पदाधिकारियों के नाम।
7. आपदा प्रबंधन के लिये सरकारी धन की व्यवस्था तथा अन्य स्रोतों के विषय में जानकारी।
8. स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका।
9. विभिन्न स्तरों पर प्रदान किये जाने वाले प्रशिक्षणों का विवरण।
10. समय-समय पर जागरूकता पैदा करने हेतु किये जाने वाले प्रदर्शन एवं अभ्यासों का विवरण।
11. विभिन्न संस्थाओं के बीच समन्वय।
12। अभिलेखीकरण।

आकस्मिक कार्ययोजना तैयार किया जाना
आकस्मिक कार्ययोजना में निम्न विवरण विस्तार से अंकित किये जाने चाहिये ताकि समय-समय पर स्थानान्तरण के उपरान्त पुलिस कर्मियों को आपदा प्रबंधन के लिये पर्याप्त मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेः-
1. क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी, (क्षेत्र की बनावट (Topography)।
2. जलवायु।
3. जनसंख्या तथा उसकी संरचना, जाति, लिंग व धर्मवार।
4. उद्योग व व्यापार।
5. प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदा
इसके अंतर्गत क्षेत्र में घटित प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं का इतिहास विस्तार से अंकित किया जाना चाहिये।
6. नेतृत्व
1. शासन का ढांचा तथा विभिन्न स्तर के पदाधिकारियों की शक्ति एवं उनका उत्तरदायित्व।
2. कमाण्ड।
3. आवश्यक सेवा प्रदाता संस्था की सेवाओं की भूमिका।
4. आकस्मिक एवं अन्य सेवा संस्थायें।
4.1. चेन ऑफ कमाण्ड।
4.2. पता एवं टेलीफोन नम्बर।
4.3. अग्नि शमन, जलापूर्ति, चिकित्सा, यातायात, रेलवे, टेलीफोन, रेडक्रास सोसायटी, सिविल डिफेंस आदि संस्थाओं तथा गैर-सरकारी संगठनों को इस सूची में शामिल किया जाये।
7. सूचना प्राप्त करने तथा उसके संप्रेषण की व्यवस्था।
8. कण्ट्रोल रूम की स्थापना।
9. विभिन्न संस्थाओं से सम्बन्ध रखने वाले
पदाधिकारियों के नाम एवं टेलीफोन नम्बर।
10. घटनास्थल पर की जाने वाली व्यवस्था।
10.1. प्रत्येक संस्था/विभाग के उत्तरदायित्व एवं कार्य का अभिलेखीकरण की जाने वाली व्यवस्था।
10.2. मौके पर पहले उपस्थित होने वाले पुलिस अधिकारी के लिये दिशा-निर्देश।
10.3. नियंत्रण कक्ष, स्टाफ, जाँचकर्ता अधिकारी तथा पर्यवेक्षणकर्ता अधिकारियों के उत्तरदायित्व।
10.4. संबंधित विभाग को सूचना देना।
10.5. चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना तथा प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों को सूचना देना।
10.6. जीवित बचे लोगों के लिये कैम्प की स्थापना।
10.7. घटना में मृत व्यक्तियों की पहचान हेतु अस्थाई मर्चरी की स्थापना।
10.8. क्षेत्र को खाली कराना।
10.9. यातायात ट्रैफिक की व्यवस्था।
10.10. सम्पत्ति की सुरक्षा।
10.11. शांति व्यवस्था बनाये रखना।
10.12. घटना की सूचना पर आने वाले वी.आई.पी. की सुरक्षा।
10.13. घटना स्थल पर मीडिया को सही तथ्यों की जानकारी देने के लिये नोडल अफसर की नियुक्ति।
10.14. मीडिया के लिये लाईजन अफसर की नियुक्ति।
10.15. संचार व्यवस्था स्थापित करना।
11. जनसाधारण को दी जाने वाली सूचना
11.1. लाउड-स्पीकर की व्यवस्था।
11.2. सही एवं स्पष्ट सूचना का प्रसारण।
11.3. रेडियो एवं टेलीविजन पर प्रसारण हेतु सही तथ्यों का संप्रेषण।
12. बचाव कार्य।
13. मलवा हटाने का कार्य।
14. शिक्षा का प्रशिक्षण।
14.1. स्वयंसेवकों तथा स्वैच्छिक संगठनों एवं सरकारी कर्मचारियों को आवश्यतानुसार प्रशिक्षण की व्यवस्था।
14.2. शैक्षिक संगठन-आपदा निवारण में स्वैच्छिक संगठनों की तैयारी, अनुभव एवं योग्यता का लाभ लेना।
15. आकस्मिक कार्ययोजना का पूर्वाभ्यास एवं प्रदर्शन- समय-समय पर विभिन्न एजेन्सियों एवं मीडिया को साथ लेकर इस प्रकार के अभ्यास एवं प्रदर्शनी आयोजित करनी चाहिये ताकि कार्ययोजना के बारे में शामिल लोगों, कर्मचारियों एवं संस्थाओं के साथ-साथ आमजन में भी जागरूकता आ सके।
16। कार्ययोजना का मूल्यांकन- समय-समय पर आकस्मिक कार्ययोजना का मूल्यांकन किया जाना चाहिये तथा उसमें अंकित सूचनाओं को अद्यावधिक किया जाना चाहिये।

पुलिस की भूमिका एवं कार्यक्षेत्र
1. भीड़ नियंत्रण-विभिन्न प्रकार की आपदाओं के विगत अनुभव से पाया गया है कि किसी घटना के होने पर जिज्ञासावश बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल की ओर पहुँचना शुरू कर देते हैं जिससे राहत कार्य में बाधा आती है, साथ ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों के नष्ट होने का भी खतरा रहता है। अतः ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में भीड़ नियंत्रण हेतु पुलिस व्यवस्था की जानी चाहिये।
2. यातायात व्यवस्था-घटना में घायल व्यक्तियों को अस्पताल तक ले जाने तथा ले आने एवं विभिन्न सेवा प्रदाता एजेन्सियों की पहुँच घटनास्थल पर हो सके, इसके लिये आवश्यक है कि सुचारु यातायात व्यवस्था की जाये। घटनास्थल से चिकित्सालय तथा अन्य सेवा प्रदाता संस्थान, जैसे- अग्शिमन सेवादल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों के बीच समानान्तर यातायात व्यवस्था बनायी जानी चाहिये ताकि ट्रैफिक के कारण कोई रुकावट पैदा न हो सके। ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में लाउडस्पीकर, रेडियो एवं टी.वी. आदि के द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये।
3. क्षेत्र की तलाशी एवं उसे खाली कराया जाना-प्रायः घटनास्थल पर पुलिस ही सबसे पहले पहुँचती है। अतः उस समय घायल व्यक्तियों को तत्काल अस्पताल पहुँचाया जाना चाहिये तथा क्षेत्र को खाली कराये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि अन्य आवश्यक सेवा प्रदाताओं को परेशानी न हो। हानिकारक पदार्थ, विस्फोटक, ज्वलनशील वस्तु, जिससे दुर्घटना की संभावना हो, उसे पर्याप्त सावधानी के साथ हटाया जाना चाहिये। क्षेत्र को खाली कराये जाने अथवा आवश्यकतानुसार यदि घर के अंदर लोगों को रहने की अनुमति दी जाती है तो इस तरह की घोषणा पुलिस के द्वारा ही स्थिति के आवश्यक मूल्यांकन के उपरांत लाउडस्पीकर से करनी चाहिये।
4. सम्पत्ति की सुरक्षा-घटना के बाद प्रायः आपराधिक तत्व चोरी, लूट-पाट आदि की घटनाओं में लिप्त हो जाते हैं। अतः पुलिस को चाहिये कि लोगों की सम्पत्ति की सुरक्षा के लिये तत्काल आवश्यक प्रबन्ध करे तथा आवश्यकतानुसार पुलिस कर्मचारियों की नामवार ड्यूटी लगायी जाये ताकि आम जनता की सम्पत्ति की सुरक्षा हो सके।
5. घटना की आपराधिक विवेचना-यदि आपदा के पीछे कोई आपराधिक कारण परिलक्षित हो तो पुलिस को इस विषय में तत्काल प्रथम सूचना अंकित कर विवेचना शुरू करनी चाहिये। इसके लिये खोजी कुत्ते, बम डिस्पोजल स्क्वाड तथा फोरेंसिक विशेषज्ञों को घटनास्थल पर आने की सूचना तत्काल दी जानी चाहिये। घटना की गंभीरता एवं महत्ता को देखते हुए विवेचना के लिये पुलिस
अधिकारियों की विभिन्न टीमें तत्काल गठित की जानी चाहिये। इस दौरान उपलब्ध लोगों के साक्ष्य, उन व्यक्तियों की वीडियो रिकार्डिंग, घटनास्थल पर उपलब्ध भौतिक साक्ष्य आदि को एकत्रित कर लेना चाहिये। यदि गिरफ्तारी की आवश्यकता हो तो आवश्यकतानुसार गिरफ्तारी की जानी चाहिये तथा नियमानुसार अन्य वैधानिक कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिये।
6. नियंत्रण कक्ष की स्थापना-घटना के तत्काल बाद सूचनाओं के आदान-प्रदान, प्रेस एवं मीडिया को तथ्यों की सही जानकारी देने तथा अफवाहों को शांत करने के उद्देश्य से एक वृहद नियंत्रण कक्ष की स्थापना की जानी चाहिये। इसमें आवश्यकतानुसार आम आदमी, मीडिया तथा बचाव कार्य में लगी विभिन्न एजेन्सियों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिये अलग-अलग उप नियंत्रण काउण्टर्स लगाये जाने चाहिये। इन काउण्टर्स पर जिम्मेदार एवं सहनशील पुलिसकर्मी तैनात किये जाने चाहिये जो विभिन्न भाषाओं की जानकारी रखते हों, संवेदनशील हों तथा अपने कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिये पूर्व में परखे जा चुके हों। इनके पास घटना की अद्यतन जानकारी तथा घायल/मृतकों के विषय में विस्तृत विवरण निरंतर उपलब्ध कराया जाना चाहिये ताकि सही सूचना का आदान-प्रदान हो सके। इन नियंत्रण उपकेन्द्रों के लिये निर्धारित टेलीफोन नम्बरों को रेडियो, टी.वी. एवं अन्य संचार के माध्यमों से जन-साधारण को उपलब्ध कराया जाना चाहिये तथा पर्याप्त संख्या में टेलीफोन पर सूचना उपलब्ध कराने हेतु पुलिसकर्मी तैनात किये जाने चाहिये। नियंत्रण कक्ष में अभिलेखीकरण पर विशेष बल दिया जाना चाहिये और यदि संभव हो तो वहाँ प्राप्त होने वाली एवं दी जाने वाली सूचना को रिकार्ड किया जाना चाहिये। इन घटनाओं के बाद होने वाली विभिन्न प्रकार की न्यायिक एवं अन्य जाँचों में इस तरह के अभिलेखों के उपलब्ध होने पर काफी सुविधा होती है।
7. वी.वी.आई.पी./वी.आई.पी. भ्रमण-आमतौर पर बड़ी घटनाओं के तत्काल बाद राजनैतिक कारणों से विभिन्न विशिष्ट महानुभावों तथा अन्य राजनैतिक व्यक्तियों का तुरन्त आगमन शुरू हो जाता है, ऐसी स्थिति में न सिर्फ उनकी सुरक्षा बल्कि शांति-व्यवस्था की गंभीर समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि इन महानुभावों की सुरक्षा के लिये अलग से पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारियों की ड्यूटी लगायी जाये। राहत एवं बचाव कार्य में लगे हुए पुलिस कर्मियों को इस कार्य से अलग रखा जाना चाहिये क्योंकि यदि उन्हें महानुभावों की सुरक्षा तथा राहत कार्य की दोहरी जिम्मेदारी दी जायेगी तो वे किसी भी कार्य को जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं पायेंगे। प्रयास यह किया जाना चाहिये कि इस तरह के भ्रमण से राहत एवं बचाव कार्य में बाधा न उत्पन्न होने पाये। इस सम्बन्ध में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को महानुभावों से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करके उन्हें यथासम्भव जनहित में भ्रमण स्थगित करने हेतु अनुरोध भी करना चाहिये। यदि पर्याप्त पुलिस उनकी सुरक्षा हेतु उपलब्ध नहीं है तो ऐसे महानुभावांें को भ्रमण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
8. मृतकों एवं घायलों की शिनाख्त-मृतकों एवं घायलों की शिनाख्त हेतु एक अलग पुलिस टीम बनायी जानी चाहिये जो उनकी फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी तथा उनसे सम्बन्घित सूचनाओं को तरतीबवार संकलित कर उनके चिकित्सा के स्थान, पोस्टमार्टम एवं अन्तिम संस्कार आदि का पूरा रिकार्ड रखे। मृतकों की शिनाख्त करने वाले व्यक्तियों का पूरा विवरण, शव को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का फोटोग्राफ तथा उनका विवरण अच्छी तरह तैयार करना चाहिये, क्योंकि कई बार इस तरह की आपदाओं के बाद घोषित होने वाली सहायता राशि को प्राप्त करने के लिये अनधिकृत व्यक्ति, मृतक को अपना रिश्तेदार बताकर धन लेने का प्रयास करते हैं तथा मृतकों के नाम, पते गलत दर्ज करा दिये जाते हैं जिससे बाद में कई कानूनी पेचीदगियाँ पैदा हो जाती हैं। अतः घायलों तथा मृतकों की शिनाख्त तथा घटनास्थल से अस्पताल, राहत केन्द्र, मर्चरी तथा उनके अंतिम संस्कार स्थल तक स्पष्ट छायांकन तथा अभिलेखीकरण किया जाना चाहिये।
9. स्वागत केन्द्र-आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि बड़ी दुर्घटनाएं या बम विस्फोट आदि के उपरांत बड़ी संख्या में दूर-दराज क्षेत्रों में घायल तथा मृतकों के रिश्तेदार एवं बड़ी संख्या में लोग अपने परिजनों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये एकत्रित होते हैं जिनको सही जानकारी देने तथा इनके ठहरने के लिये स्वागत केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिये, जैसे-इनके बैठने, खाने-पीने आदि की व्यवस्था करायी जानी चाहिये। इनको वांछित सूचना नियंत्रण कक्ष के माध्यम से उपलब्ध करायी जानी चाहिये। स्वैच्छिक संगठनों के स्वयं सेवकों को इनके सहायतार्थ लगाया जाना चाहिये जो किसी पुलिस अधिकारी के मार्गदर्शन में कार्य करें।
10. विदेशियों के बारे में सूचना-यदि किसी विदेशी नागरिक की घटनास्थल में घायल या मृत्यु होती है तो पुलिस को चाहिये कि उसके सम्बन्ध में विस्तृत सूचना वियना कन्वेंशन में दिये गये प्राविधानों के अनुसार सम्बन्धित देश के दूतावास को यथाशीघ्र उपलब्ध करा दी जाये।

200 अधिकारियों ने कागज को नोट में बदलना सीखा


रायपुर । 1 और 2 मार्च को पुलिस विभाग द्वारा संपन्न अंधश्रद्धा निर्मूलन कार्यशाला में राज्य भर के 200 से अधिक पुलिस उप अधीक्षकों, निरीक्षकों, हवलदारों, चिकित्सकों, वकीलों, विज्ञान शिक्षकों ने रंगकर्मियों, साहित्यकारों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नंगे पाँव दहकते अंगारों पर चलना सीखा । इसके अलावा इन सभी स्वयंसेवी मास्टर्स ट्रेनरों ने हवा में आग लगाने, नारियल से चावल, बाल आदि निकालने, कोरे कागज़ पर आकृति बनाने, गले से तलवार आर-पार करना, कागज़ को नोटों में तब्दील करना, किसी भी तस्वीर से भभूत निकालना आदि कई दर्जनों ऐसे हाथ सफाई और ट्रिक्स को प्रेक्टिकल कर सीखा जिसकी आड़ में ढ़ोंगी एवं शातिर बदमाश लोग सीधी-सादी जनता को ठग कर आर्थिक अपराधों को अंजाम देते हैं । ये प्रशिक्षक अब अपने-अपने जिलों के अनुविभाग, थाने और गाँवों के लिए कम से कम 20 हजार विशेष ट्रेनर्स प्रशिक्षित करेंगे जो ऐसे अपराधों पर रोकथाम के लिए प्रशिक्षित होंगे ।

छत्तीसगढ़ पुलिस की पहल का अनुकरण बिहार और महाराष्ट्र में भी
छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा शुरू किया गया सामाजिक, वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील चेतनामूलक अभियान देश भर में अनूठा है । यह देश के सभी राज्यों की पुलिस प्रशासन के लिए रोल मॉडल बनेगा । बिहार अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भंते बुद्धप्रकाश और देश भर में अंधविश्वास आधारित सामाजिक अपराधों के खिलाफ़ मुहिम चलाने वाली संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार श्री उमेश चौबे ने छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा संचालित अभियान की कार्ययोजना को बिहार एवं महाराष्ट्र सरकार एवं पुलिस द्वारा लागू कराने का विश्वास जताया है । वे पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन की विशेष पहल से प्रारंभ किये गये अंधश्रद्धा आधारित अपराधों को हतोत्साहित करने के लिए संचालित अभियान की पहली कार्यशाला में सम्मिलित होने रायपुर आये थे। श्री चौबे ने छत्तीसगढ़ मॉडल की भूरि-भूरि प्रंशसा करते हुए इसे सभी राज्यों में लागू कराने के लिए स्वयं पहल की बात कही ।
पुलिस अधिकारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रम बनेगा ।

पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन की खास पहल से विभाग द्वारा अंधविश्वास के कारण होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए संचालित सामाजिक अभियान को अब व्यापक रूप दिया जा रहा है । पूरे राज्य में अंधविश्वासों से मुक्त होकर वैज्ञानिक सोच के प्रसार के लिए सामाजिक सहभागिता का वातावरण बनाने की व्यापक रणनीति के अंतर्गत छत्तीसगढ़ पुलिस टोनही प्रताड़ना अधिनियम एवं औधषि और जादूई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम आदि कानूनों का कड़ाई से पालन कराने के लिए अब अपने विभाग के सभी फ़ील्ड अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विशेष तौर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया जायेगा ।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) श्री गिरधारी नायक के मार्गनिर्देशन में पुलिस विभाग के सभी प्रशिक्षु पुलिस उप अधीक्षकों, सहायक उपनिरीक्षकों को विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया जायेगा। इसके अलावा सभी जिलों में पुलिस प्रशिक्षण स्कूलों में भी नव नियुक्त आरक्षकों और हवलदारों को भी सेवाकालीन प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षित किया जायेगा ताकि वे सेवाकाल में बेझिझक अंधश्रद्धा से उत्पन्न अपराधों की रोकथाम कर सकें । इसके लिए सबसे पहले अंधश्रद्धा निर्मूलन एवं वैज्ञानिक सोच विकसित करने वाले देश के विशेषज्ञों की सहायता से विभाग के लिए राज्य स्तरीय प्रशिक्षक तैयार किया जा रहा है जो विभाग में सभी स्तरों पर प्रशिक्षण देंगे । इसके लिए विशेष पाठ्यक्रम भी बनाया जा रहा है ।

प्रशिक्षु अधिकारियों को अंधश्रद्धा निर्मूलन कानूनों का प्रशिक्षण
पुलिस मुख्यालय द्वारा संचालित अभियान के अंतर्गत दूसरे चरण में छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी चंदखुरी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 44 नव पुलिस उप अधीक्षकों और लगभग 300 सहायक उप निरीक्षकों को फ़ील्ड में पदस्थी से पूर्व ही अपराधों को प्रोत्साहित करने वाले अंधविश्वासों से लड़ने के लिए दक्ष बनाया जायेगा ताकि वे कानूनी प्रावधान यथा औषधि और जादू उपचार(आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम-1955,भारतीय दंड संहिता(धारा 420 एवं अन्य), छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर लागू टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम-2005 के पालन को सुनिश्चित कर सकें जिससे महिलाओं की सामाजिक प्रताड़ना, आर्थिक शोषण, ठगी आदि पर लगाम कसा जा सके ।

अंधविश्वास आधारित अपराधों के नियंत्रण हेतु अभियान – एक नज़र


विश्वरंजन
पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़

अभियान क्यों ?
ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में निरक्षरता, परंपरागत सोच और तद्-केंद्रित जीवन दृष्टि, तर्क आधारिक मानसिकता के अभाव, वैज्ञानिक सत्यता की जानकारी के अभाव में आज भी कई तरह की अवैधानिक, अमानवीय व असामाजिक अंधविश्वास प्रचलित हैं । इनमें टोनही, डायन, झाड़-फूँक की आड़ में ठगी, धन दोगूना करने की चालाकियाँ, गड़े धन निकालना, शारीरिक, मानसिक आपदाओं को हल करने के लिए गंडे ताबीज, चमत्कारिक पत्थर एवं छद्म औषधियों का प्रयोग कर धन कमाना आदि प्रमुख हैं । इसके परिणाम स्वरूप महिला प्रताड़ना एवं हिंसा, धोखेबाजी से धन उगाही, चिकित्सा वर्जना के कारण असमय मृत्यु की घटनाओं की संभावना बढ़ जाती हैं, जो समाज के साथ-साथ पुलिस एवं कानून व्यवस्था के लिए चुनौतियाँ खड़ी करती हैं।

वर्तमान में अंधश्रद्धा के कारण समाज में उत्पन्न होनी वाली चुनौतियों और दुष्परिणामों की रोकथाम के लिए कई तरह के कानून प्रावधान भी लागू हैं यथा -औषधि और जादू उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम -1955,भारतीय दंड संहिता ( धारा 420 एवं अन्य), छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम-2005 आदि । इसके बावजूद कानूनी प्रावधानों के व्यापक प्रचार-प्रसार का अभाव, सामाजिक एवं स्वयंसेवी हस्तक्षेप एवं पहल की कमी अंधविश्वास से उपजीं कई बड़ी ऐसी घटनाओं की सूचना पुलिस या प्रशासन तक पहुँच ही नहीं पाती जो मूलतः अवैधानिक एवं अमानवीय प्रकृति की होती हैं । इसमें ग्रामों में बैगा-गुनिया आदि के प्रभावी-पांरपरिक पकड़ जैसी नकारात्मक भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है । इन वैगाओं के प्रभाव एवं स्वयं ऐसे अंधश्रद्धा से ग्रसित होने के कारण ग्राम कोटवार भी ऐसे संभावित हादसाओं की गोपनीय सूचना पुलिस थानों में देने से बहुधा कतराते हैं । ऐसे में, इन संवेदनशील मुद्दों पर घटना के पूर्व औऱ घटना के बाद भी सम्यक कार्यवाही करने में पुलिस कमजोर हो जाती है ।

निष्कर्ष यही कि ऐसे अंधविश्वास न केवल निराधार एवं अवैज्ञानिक हैं बल्कि ये कई तरह अवैधानिक, असामाजिक, अमानवीय अपराधों के कारण भी हैं । ये अंधविश्वास पुलिस के समक्ष निरंतर कानूनी कार्यवाहियों की संभावना को कई कोणों से प्रोत्साहित करते हैं । एक ओर जहाँ, ऐसे अंधविश्वासों की आड़ में अपराध कारित होते हैं, दूसरी ओर ऐसे अपराधों को पारंपरिक मूल्यों के अनुरूप वैध ठहराकर गाँवों के प्रभु वर्गों द्वारा पुलिस को इससे दूर रखा जाता है ।

अतः इन परिस्थितियों के निपटने के लिए एवं अंधविश्वास के समूल निवारण हेतु सचेत एवं तत्पर कानूनी कार्यवाही के साथ-साथ एक सामाजिक अभियान भी आवश्यक है जिसे स्वयंसेवी आधार पर संचालित किया जा सकेगा ।

अभियान का लक्ष्य –
- राज्य में टोनही प्रथा के कारण होने वाले अपराध के दर को शून्य पर लाना ।
- राज्य में पुलिस विभाग के फील्ड अधिकारियों का उन्मुखीकरण ।
- राज्य में टोनही आदि अंधविश्वासों के बरक्स सामाजिक वातावरण तैयार करना ।
- टोनही आदि अपराधिक प्रवृति के खिलाफ मानव संसाधन को प्रशिक्षित कर दक्ष बनाना ।
- राज्य के सभी ग्रामों में टोनही सहित अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना का प्रसार ।
- अपराधिक प्रवृति वाले अंधविश्वासों की रोकथाम के लिए कारगर सूचना नेटवर्क बनाना ।

अभियान की अवधि एक वर्ष ( 1 मार्च 2009 से 29 फरवरी 2010 )

अभियान की रूपरेखा –
राज्य स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन –
राज्य भर में टोनही आदि प्रचलित अंधविश्वासों को केवल कानूनी या पुलिस कार्यवाही से नियंत्रित नहीं किया जा सकता । इसके लिए चरणबद्ध और समयबद्ध स्वयंसेवी अभियान अधिक कारगर होगा, जिससे ऐसी अंधविश्वासों के ख़िलाफ सामाजिक वातावरण तैयार किया जा सके । इस अभियान का क्रियान्वयन राज्य स्तर पर गठित राज्य पुलिस टास्क फ़ोर्स द्वारा किया जायेगा। राज्य पुलिस टास्क फ़ोर्स के पदेन अध्यक्ष पुलिस महानिदेशक होंगे । राज्य स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स अभियान हेतु रणनीतियों का निर्धारण, संचालन, समीक्षा, मानिटरिंग, प्रोत्साहन, प्रेरणा एवं वांछित सहयोग उपलब्ध कराने का कार्य करेगा । यह टास्क फ़ोर्स पुलिस मुख्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा । इस टास्क फ़ोर्स में प्रमुख, राष्ट्रीय सेवा योजना प्रमुख, रेड क्रास सोसायटी, स्वयंसेवी चिकित्सक, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, विज्ञान-शिक्षक, रंगकर्मी, साहित्यकार एवं वरिष्ठ संपादक, महिला संगठनों की कार्यकर्ता आदि, जो स्वयंसेवी भाव से धीरे-धीरे जुड़ते जायेंगें, सम्मिलित हो सकेंगे । इस टास्क फोर्स में पुलिस अधिकारियों के अलावा उन स्वयंसेवी युवाओं को भी रखा जायेगा जो पूर्व में ऐसे किसी सामाजिक जन जागरण अभियानों में संबंद्ध रहे हों ।

जिला स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन –
जिले भर में अभियान के संचालन के लिए जिला स्तर पर एक पुलिस टास्क-फ़ोर्स का गठन किया जायेगा, जिसके पदेन अध्यक्ष संबंधित पुलिस अधीक्षक होंगे । यह टास्क फ़ोर्स जिला पुलिस कार्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा । इस प्रकोष्ठ को कार्यालयीन एवं अन्य आवश्यक संसाधन पुलिस अधीक्षक द्वारा उपलब्ध कराया जा सकेगा । इस टास्क फ़ोर्स का गठन पुलिस अधीक्षक करेंगे जिसमें प्रमुख रेडक्रास सोसायटी, स्वयंसेवी चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद्, रंगकर्मी, साहित्यकार एवं पत्रकार, महिला संगठनों की कार्यकर्ता आदि होंगे । इस टास्क फोर्स में अनिवार्यतः उन युवाओं को भी रखा जाये जो पूर्व में ऐसे किसी सामाजिक जन जागरण अभियानों में संबंद्ध रहे हों । (ऐसे सदस्य कों किसी भी राजनीतिक दल का अक्रिय या सक्रिय सदस्य नहीं होना चाहिए । ) पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स के नियमित कार्यों को एक समन्वयक द्वारा संपादित किया जायेगा जिसका चयन पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला मुख्यालय में पदस्थ विभाग किसी योग्य एवं स्वयंसेवी अधिकारी में से किया जा सकेगा, जो अपने कार्यों के अलावा उक्त अभियान को गति देने में पुलिस अधीक्षक को सहयोग देंगे ।

अनुविभागीय/थाना स्तरीय पुलिस टास्क फोर्स का गठन –
अनुविभाग में आने वाले गाँवों में अभियान संचालन के लिए अनुविभागीय स्तर पर एक पुलिस टास्क-फ़ोर्स का गठन जिला पुलिस टास्क फोर्स की तरह किया जायेगा, जिसके पदेन अध्यक्ष संबंधित अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस होंगे । यह टास्क फ़ोर्स अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस कार्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा जिसे कार्यालयीन एवं अन्य आवश्यक संसाधन अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस के द्वारा उपलब्ध होगा । इसी तरह थाना स्तर पर पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन पुलिस अधीक्षक के मार्गनिर्देशन संबंधित थानेदार करेंगे । इन निचली इकाईयों में भी जिला स्तरीय टास्क फ़ोर्स की तरह स्वयंसेवी युवाओं को सम्मिलित किया जायेगा । ये टास्क फ़ोर्स अपने अपने क्षेत्रों में अभियान का क्रियान्वयन, संचालन, समीक्षा, मानिटरिंग एवं प्रोत्साहन कार्य करेगें।

टास्क फ़ोर्स के कार्य –
- अपने क्षेत्र में प्रचलित टोनही सहित ऐसे अन्य अंधश्रद्धाओं की पहचान करना जो कानूनी के समक्ष अवैधानिक या अप्रिय स्थितियों की संभावनाओं को बढ़ावा देती हैं ।
- प्रत्येक अंधश्रद्धा के समूल निराकरण हेतु वातावरण निर्माण के लिए अधिकतम् संभावित सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, वैधानिक, शैक्षिक चिकित्सागत पहलों का आंकलन, क्षेत्र की वास्तविकताओं के अनुरूप रणनीतियों का निर्धारण एवं उनका चरण बद्ध ढंग से सम्यक क्रियान्वयन ।
- क्षेत्र में वैज्ञानिक यथार्थ, सामाजिक चेतना, कानूनी प्रावधानों, तर्काश्रित आस्था एवं विश्वास को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियों का आयोजन, प्रचार-प्रसार एवं प्रोत्साहन एवं ऐसी स्वयंसेवी संगठनों को सहयोग।
- अभियान की नियमित मासिक समीक्षा बैठकों का आयोजन, आगामी गतिविधियों के संचालन हेतु दिशाबोध, नयी परिस्थितियों, अनुभवों, संभावनाओं के आधार पर नये कारगर क़दमों का निर्धारण ।
- अभियान क्रियान्वयन हेतु आवश्यक संसाधनों तथा उसकी पूर्ति के लिए जिलों में उपलब्ध एवं संभावित विभिन्न प्रकार के वांछित तथा उपयुक्त शासकीय/अशासकीय/सामाजिक/सांस्कृतिक/स्वयंसेवी ट्रस्टों, संगठनों के संसाधनों का सम्यक आकलन, संपर्क एवं दोहन (उदाहरण के तौर पर, टोनही प्रथा वाले ग्रामों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपचार शिविर, चिकित्सा परामर्श, ट्रिक्स एवं वैज्ञानिक सत्यों के प्रदर्शन के प्रशिक्षकों हेतु साक्षरता समिति से कार्यकर्ताओं का चिन्हाँकन, पंचायत विभाग के माध्यम से पंचायती राज कार्यकर्ताओं का उन्मुखीकरण, चौपालों तथा ग्रामसभाओं में परामर्श, समाज कल्याण विभाग से कलापथक कलाकार, स्वयंसेवी कार्यकर्ता आदि)
- वैज्ञानिक ट्रिक्स का प्रशिक्षण, प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं ग्रामों में प्रायोगिक प्रदर्शन, कला जत्थों का आयोजन, बौद्धिक सभाओं का चरणबद्ध आयोजन, स्थानीय भाषा में कानूनी प्रावधानों का पोस्टर एवं पांप्लेट निर्माण कर ग्रामों के चौपालों में चस्पाकरण ।
- सभी प्रकार की मीडिया (आकाशवाणी, टीव्ही चैनलों, प्रिंट मीडिया, प्रबुद्ध साहित्यकारों, नृत्य मंडलियों, रामायण मंडलियों, धार्मिक संस्थाओं के प्रमुख आदि) का व्यापक समर्थन प्राप्त करना।
- टोनही एवं ऐसे अंधश्रद्धा केंद्रित कुरीतियों को रोकने में सर्वोत्कृष्ट एवं कारगर भूमिका निभाने वाले पुलिस कर्मी, स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं, अधिकारियों का चिन्हांकन 26 जनवरी, 15 अगस्त आदि महत्वपूर्ण अवसरों पर सार्वजनिक सम्मान एवं पुरस्कार।
- टोनही, टोना, जादूगरनी आदि के कथित आरोप से पीड़ित परिवार, महिला-पुरुष का गोपनीय सूचना एकत्र करना, उन्हें घटना पूर्व पूर्ण कानूनी सहयोग एवं उनके सामाजिक बचाव के लिए सभी उपायों का सतर्क अनुप्रयोग
- अंधश्रद्धा फैलाकर समाज में अवैज्ञानिक, अमानवीय, असामाजिक वातावरण बनाने वाले तथा द्रव्य एवं रूपये कमाने वाले धूर्त बैगा, गुनिया, टोनहा की गोपनीय सूची तैयार करना । उन्हें टास्क फोर्स की निचली इकाइयों के द्वारा समझाइस देना । ऐसे ग्रामों में ( खासकर हाट बाजार के दिन भी )वैज्ञानिक ट्रिक्स से प्रशिक्षित टीम द्वारा प्रदर्शनों का आयोजन सुनिश्चित करवाना ।
- इसके अलावा जिला टास्क फोर्स अपने स्तर पर आपसी विचार-विमर्श से अन्य कार्यों, रणनीतियों का निर्धारण कर सकेगा ।

वैज्ञानिक चेतना के प्रसार हेतु स्वयंसेवी युवकों का चयन एवं प्रशिक्षण –
वैज्ञानिक चेतना के प्रसार, टोनही एवं अन्य अंधविश्वासों की वास्तविकता से परिचित कराने, उसके आधार पर टोने-टोटकों के छद्मों का पर्दाफाश करने हेतु प्रत्येक स्तर पर प्रशिक्षित स्वयंसेवी युवकों की एक टीम होगी । यह त्रिस्तरीय टीम राज्य, जिला फोर्स, अनुविभाग/थाना स्तरीय टास्क फोर्स के संयोजन में कार्य करेगी । विशेष तौर पर यह टीमें पुलिस टास्क फ़ोर्स के मार्गनिर्देशन में गाँवों में वैज्ञानिक चेतना हेतु प्रायोगिक प्रदर्शन करेंगी। इन स्वयंसेवियों को कई दशकों से कार्यरत नागपुर की स्वयंसेवी संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निवारण समिति द्वारा प्रशिक्षित किया जा सकेगा । इन्हें प्रशिक्षित कराने का उत्तरदायित्व एवं आवश्यक संसाधन पुलिस राज्य/जिला/अनुविभागीय पुलिस टास्क फोर्स मुहैया करायेगी ।
राज्य स्तर पर –
राज्य स्तर पर 25 मुख्य स्त्रोत प्रशिक्षकों होंगे । ऐसे मुख्य स्त्रोत प्रशिक्षकों का चयन पुलिस महानिदेशक द्वारा राज्य पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में किया जायेगा । ये सभी ऐसे युवा चिकित्सक, स्वयंसेवी संगठनों के युवा कार्यकर्ता, पुलिस विभाग के योग्य अधिकारी, विज्ञान प्रचारक, पत्रकार आदि हो सकते हैं, जिन्हें स्वयंसेवी आधार पर यह प्रशिक्षण दिया जा सकेगा तथा ये आवश्यकतानुसार अन्य स्तर पर आवासीय प्रशिक्षण का आयोजन एवं अंधविश्वास के निवारण की मानिटरिंग आदि कार्यों में स्वतः स्फूर्त होकर अपना योगदान दे सकेंगे ।

जिला स्तर पर-
जिला स्तर पर 10-10 मास्टर पर्सन्स होंगे । ऐसे मास्टर ट्रेनर्स का चयन जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में किया जायेगा । ऐसे मास्टर्स ट्रेनर्स का चयन स्वयंसेवी आधार पर कार्य करने वाले सामाजिक संस्थाओं के समर्पित युवा कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं इच्छुक पुलिस कर्मियों में से ही किया जा सकेगा । इन्हें राज्य स्तर पर आयोजित 2-2 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित किया जायेगा । इस तरह से कुल 190 मास्टर ट्रेनर्स जिलों के लिए तैयार होंगे । जो ग्राम्य स्तर पर चयनित 1-1 युवाओं को जिला स्तर पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित करेंगे एवं उनके साथ मिलकर जिलों के सभी गाँवों में टोनही सहित अन्य प्रचलित अंधविश्वासों के निर्मूलन में पुलिस की मदद करेंगे ।

अनुविभागीय स्तर पर-
प्रत्येक अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस अपने अधीन थानों के अंतर्गत अनुविभाग स्तर पर भी 10-0 ट्रेनरों का चयन करेंगे जिन्हें राज्य स्तर पर प्रशिक्षित एवं जिला स्तर के मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षित करेंगे । ऐसे अनुविभाग स्तरीय ट्रेनर्स का चयन अनुविभागीय पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में स्वयंसेवी आधार पर कार्य करने वाले सामाजिक संस्थाओं के समर्पित युवा कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं इच्छुक पुलिस कर्मियों में से ही किया जा सकेगा । अनुविभाग स्तर के ऐसे ट्रेनर्स जिला स्तरीय ट्रेनर्स के साथ अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले थानों के अधीन प्रत्येक ग्रामों से 1-1 स्वयंसेवी, वैज्ञानिक चेतना पर विश्वास करने वाले शिक्षित युवाओं को उन आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित करने में मदद करेंगे, जो थाना स्तर पर होगा ।

थाना स्तर पर –
प्रत्येक ग्राम से 1-1 स्वयंसेवी कार्यकर्ता होंगे । ऐसे प्रत्येक स्वयंसेवी कार्यकर्ता का चयन अंतिम रूप से थानेदार थाना स्तरीय टास्क फोर्स के संयोजन से कर सकेंगे । ग्राम वार नामों का लिखित प्रस्ताव कोटवार एवं प्रधान अध्यापक प्राथमिक शाला या माध्यमिक शाला देंगे । ऐसे स्वयंसेवी कार्यकर्ता का चयन करते वक्त कोटवार एवं प्रधान अध्यापक सुनिश्चित करेंगे कि वह न्यूनतम (आदिवासी क्षेत्रों में) आठवीं उत्तीर्ण हो, या अधिकतम मेट्रिक उत्तीर्ण हो । उसे सामाजिक कायों पर निःस्वार्थ और बिना पारिश्रमिक के अपने गाँव के सामाजिक उत्थान के लिए विश्वास हो । उसे विज्ञान पर विश्वास हो और वह टोनही आदि अंधविश्वास के ख़िलाफ़ कार्य करने की रूचि रखता हो । चूंकि अनुविभागीय स्तर पर ग्रामों की संख्या अधिक होगी अतः यह प्रशिक्षण थाना स्तर या विकास खंड स्तर पर होगा ।

इस तरह से राज्य के प्रत्येक ग्राम के लिए एक स्वयंसेवी युवा को प्रशिक्षित किया जायेगा जो अपने स्तर पर अंधविश्वास के निवारण के लिए न केवल वैज्ञानिक चेतना का संचार करेंगे बल्कि ग्राम स्तर पर ऐसे तत्वों को समझाइस भी देने में सक्षम हो सकेंगे। ऐसे स्वयंसेवियों से अपेक्षा भी रहेगी कि वे ऐसी संभावित घटनाओं की पूर्व सूचना भी सीधे थानेदार को दे सकेंगे । इनके चिन्हांकन के लिए थानेदार/पुलिस उप अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रशिक्षणोपरांत संतुष्ट होने पर परिचय पत्र भी दिया जा सकेगा ।

पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली के दृष्टिकोण से भविष्य में ऐसे युवकों को (उनकी सामाजिक भूमिका के स्तर पर योग्यता और प्रदर्शन पर विचार करते हुए) अन्य राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक महत्व के विषयों पर भी संसूचना हेतु उपयोग मे लाया जा सकता है, ताकि ऐसी आसन्न समस्याओं का पूर्व आंकलन किया जा सके जो पुलिस विभाग के लिए ज़रूरी हों । जैसे नक्सली समस्या, जुआ, जाली नोट का प्रचलन, शराब एवं मादक द्रव्यों का अवैध व्यापार आदि ।

अभियान के अंतर्गत वर्ष भर जिलों में विभिन्न गतिविधियाँ
01. पुलिस विभाग के फील्ड अधिकारियों, थानेदारों का उन्मुखीकरण ।
02. यथासंभव सभी ग्रामों में एक बार वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रदर्शन, बौद्धिक सभा का आयोजन ।
03. कोटवार द्वारा प्रत्येक माह गाँव भर में टोनही निरोधक कानून आदि की मुनादी करना ।
04. कोटवार द्वारा कथित टोनही और बैगा आदि की गोपनीय सूची थानों को सौपना ।
05. प्रत्येक ग्रामों में पोस्टर, पाम्पलेट का वितरण एवं चौपालों पर चस्पा करना ।
06. कला जत्था दल द्वारा प्रमुख ग्रामों में जन जागरण अभियान हेतु प्रस्तुति ।
07. थानेदार द्वारा पंचायत के सहयोग से घटना संभावित ग्रामों में समझाईस बैठकों का आयोजन ।
08. ग्राम पंचायतों द्वारा हर ग्राम में टोनही विरोधी बैठक एवं ग्राम सभाओं का आयोजन ।
09. माननीय मुख्यमंत्री द्वारा जिला, जनपद, ग्राम पंचायत प्रमुखों को अपील पत्र जारी करना ।
10। त्रिस्तरीय पंचायत के अध्यक्षों, विधायकों, धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों की ओर से अपील
11। मुख्य सचिव की बैठक में कलेक्टरों को ऐसे अभियान मे संपूर्ण सहयोग का दिशाबोध देना ।
12. स्कूलों द्वारा टोनही एवं अंधविश्वास विरोधी रैलियों, प्रभात फेरियों, प्रतियोगिताओं का आयोजन ।
13. प्रत्येक जिले में एनसीसी/एनएसएस द्वारा ग्रामों में शिविरों का आयोजन ।
14. कृषि विभाग किसान मेलों में व सभा आयोजित कर टोनही विरोधी कानून की जानकारी देना ।
15. नेहरू युवा केंद्र को अभियान के लिए प्रेरित करना एवं उन्हें टास्क सौपना ।
16. आँगन बाड़ी केंद्रों में महिलाओं को ऐसी कुरीतियों के विरूद्ध सशक्त करने की वार्षिक रणनीति तैयार कर कार्य करना ।
17. मीडिया के सभी माध्यमों को उत्प्रेरित कर दोहन ।
18. टोनही आदि अंधविश्वासों के कारण होने वाले अपराधों के दर को शून्य पर लाना ।
19. उच्च प्रदर्शन करने वाले स्वयंसेवी अधिकारियों, कार्यकर्तोओं का सम्मान ।

अभियान हेतु निर्धारित समय-सारिणी
01. राज्य टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 28 फरवरी, 2009
02. जिला टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 5 फरवरी, 2009
03. अनुविभागीय टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 10 फरवरी, 2009
04. थाना टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 10 फरवरी, 2009
05. ग्राम स्तर पर स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं का चयन – 28 फरवरी, 2009
06. राज्य स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला – 1-2 मार्च, 2009
07. जिला स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला – 10-12 मार्च, 2009
08. अनु. स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला– 20-21 मार्च, 2009
09. थाना स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला– 25-26 मार्च, 2009
10. राज्य में अंधविश्वास निवारण अभियान का शुभांरभ – 1 अप्रैल, 2009
11. अभियान के अंतर्गत विभिन्न गतिविधियों का संचालन – 31 मार्च, 2010 तक
(टीपः- आवश्यकतानुसार अभियान की अविधि बढ़ायी जा सकेगी)

अंधविश्वासजनित अपराध रोकने पुलिस तैयार करेगी 20 हज़ार स्वयंसेवी कार्यकर्ता

पुलिस तैयार करेगी 20 हज़ार स्वयंसेवी कार्यकर्ता - विश्वरंजन
हर ग्राम से एक कार्यकर्ता होंगे तैयार

रायपुर । सामाजिक अपराध और अमानवीय गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाले प्रचलित अंधविश्वासों से प्रदेश को मुक्त करने के लिए राज्य के हर गाँव से एक-एक कार्यकर्ता को छत्तीसगढ़ पुलिस प्रशिक्षित करने जा रही है । ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने-अपने गाँव में पांरपरिक रूप से प्रचलित अंधविश्वासों, जैसे इनमें टोनही, डायन, झाड़-फूँक की आड़ में ठगी, धन दोगूना करने की चालाकियों, गड़े धन निकालने, शारीरिक, मानसिक आपदाओं को हल करने के लिए गंडे ताबीज, चमत्कारिक पत्थर एवं छद्म औषधियों का प्रयोग कर धन कमाने आदि गतिविधियों, घटनाओं के पीछे की जाने वाली चालाकियों एवं ट्रिक्स की वैज्ञानिक व्याख्या कर प्रायोगिक प्रदर्शन कर जनजागरण करेंगे । ज्ञातव्य हो कि पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन की विशेष सामाजिक पहल पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने वर्ष 2009 में टोनही प्रकरणों की दर को शून्य पर स्थिर करने तथा अंधविश्वास आधारित अपराधों के नियंत्रण हेतु विशेष अभियान प्रारंभ किया है ।

पुलिस महानिदेशक ने बताया कि राज्य में संचालित इस अभियान में लगभग 20,000 (बीस हज़ार) स्वयंसेवी कार्यकर्ता प्रशिक्षित होकर अंधविश्वासजनित अपराधों को रोकने में प्रमुख भूमिका निभायेंगे । प्रथम चरण में 19 जिलों से चयनित 200 जिला स्त्रोत प्रशिक्षकों को देश-विदेश में वैज्ञानिक तरीकों से अंधश्रद्धा उन्मूलन के लिए प्रसिद्ध संस्था नागपुर एवं पटना की सामाजिक संस्था द्वारा दो दिवसीय प्रशिक्षण रायपुर में दिलाया जायेगा । ये जिला स्त्रोत प्रशिक्षक पुलिस अधीक्षक एवं जिला टास्क फ़ोर्स के अध्यक्ष द्वारा चयनित पुलिस अधिकारी एवं स्वयंसेवी कार्यकर्ता होंगे । द्वितीय चरण में ये 200 प्रशिक्षित जिला स्त्रोत प्रशिक्षक 19 जिलों के प्रत्येक अनुविभाग स्तर पर 10-10 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करेंगे । ये अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले पुलिस कर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, महिला संगठन के सदस्य, कलाकार, समाजसेवी होंगे ।
अनुविभाग स्तर पर प्रशिक्षित ट्रेनर्स अपने अनुविभाग के अधीन सभी थानों के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक ग्राम से 1-1 स्वयंसेवी कार्यकर्ता को दक्ष करेंगे । ये स्वयंसेवी कार्यकर्ता ग्राम कोटवार, युवा/महिला संगठन के सदस्य, लोक कलाकार आदि होंगे जिनका चिन्हाँकन थानेदार द्वारा किया जायेगा । इस तरह से कुल 19744 अर्थात् 20,000 कार्यकर्ता वैज्ञानिक चेतना, ट्रिक्स एवं उन चालाकियों से ग्रामीणों को परिचित करायेंगे ताकि टोनही आदि कई अंधविश्वासों से अपराधों को बल न मिले । इसके अलावा प्रत्येक मेले, मडई, शिविरों आदि में वैज्ञानिक ट्रिक्स से अंधविश्वास के बचने के लिए विशेष आयोजन भी करेंगे ।
ये प्रशिक्षित स्वयंसेवक कार्यकर्ता विशेष तौर पर टोनही, डायन के साथ-साथ अंधश्रद्धा के दुष्परिणामों की रोकथाम के लिए कई तरह के प्रावधानित कानून जैसे - औषधि और जादू उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1955, भारतीय दंड संहिता ( धारा 420 एवं अन्य), तथा छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम-2005 आदि की जानकारी भी गाँव-गाँव में देंगे, ऐन वक्त पर अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को संसूचित करेंगे ताकि अनहोनी और अप्रिय घटनाओं, अपराधों समय रहते ही को टाला जा सके ।

रंगईगुड़ा के 10 संघम सदस्यों का आत्मसमर्पण

दंतेवाड़ा । नक्सलियों से तंग आकर एक महिला समेत 10 संघम सदस्यों ने बुधवार की शाम 5 बजे दोरनापाल थाने में पहुँच आत्म समर्पण किया । आत्म समर्पण किए हुए संघम सदस्यों ने पूछताछ में बताया है कि और भी संघम सदस्य आत्म समर्पण के लिए तैयार है और शीघ्र ही आत्म समर्पण करने वाले हैं । फ़िलहाल सभी संघम सदस्यो से पुलिस पूछताछ ज़ारी रखे हुए हैं । सभी सदस्य दोरनापाल था अंतर्गत कोर्रापाड़ पंचायत के रंगईगुड़ा ग्राम के निवासी है ।

दोरनापाल एसडीओपी ओ.पी. शर्मा ने बताया कि आत्म समर्पण करने में महिला संघम सदस्य - पदाम बंडी (21), सोढ़ी हड़मा (35 वर्ष), वेट्टी गंगा (35 वर्ष), मड़कम माड़का (30 वर्ष) ताती हुंगा (29 वर्ष) ताती बंडी (22 वर्ष), मड़कम मुका (22 वर्ष), ताती देवा (32 वर्ष), कोहरुम देवा (30 वर्ष) व दूधी देवा (20 वर्ष) शामिल है । जिन्हें उसी गांव के पटेल सैकड़ों ग्रामीणों के साथ संघम सदस्यों को आत्म समर्पण के लिए दोरनापाल थाने लेकर पहुँचे थे । आत्मसमर्पित सभी सदस्य पिछले 2-3 वर्षों से नक्सलियों के साथ शामिल हुए थे । पूछताछ के दौरान संघम सदस्यों ने बताया कि वे नक्सलियों के कहने पर पेड़ काटना, सड़क काटकर मार्ग अवरुद्ध करने जैसे कार्य कराए जाते थे । उन्हें नक्सली जबरदस्ती घर से उठाकर ले जाते थे । रोजी-रोटी के लिए खेती भी करने नहीं दी जाती थी, मना करने पर पुलिस मुखबिर करने का आरोप लगाते हुए जान से मारने की धमकी दी जाती थी । पुलिस का दबाव बढ़ने व नित्य प्रति ख़ून-ख़राबे होने से तथा नक्सलियों से तंग आकर उन्होंने आत्म समर्पण करने का निर्णय लिया । साथ ही बताया कि और भी सदस्य शीघ्र ही आत्म समर्पण करने वाले हैं । आत्म समर्पित सदस्यों के मूलभूत आवश्यकताओं का वैकल्पिक व्यवस्था कर राहत शिविर दोरनापाल में ठहराया गया है । श्री शर्मा ने बताया कि आत्म समर्पितों के साथ सहानुभूतिपूर्वक रवैया अपनाया जाएगा ।

शिवकुमार ने छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है – विश्वरंजन


रायपुर । 4 फरवरी । छत्तीसगढ़ के युवा खिलाड़ी शिवकुमार ने एशिया मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशीप में स्वर्ण पदक जीतकर देश सहित छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है । उनके इस कार्य से छत्तीसगढ़ पुलिस का माथा भी गर्वोन्वत हुआ है । पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन ने शिवकुमार की प्रशंसा करते हुए कहा है कि सातवीं बटालियन के प्लाटून कमांडर श्री शिवकुमार का कार्य विभाग के अन्य खेल प्रतिभाओं के लिए भी अनुकरणीय बन पड़ा है ।


श्री शिवकुमार ने विगत 13-17 जनवरी को थाईलैंड के चांगमाई शहर में संपन्न 15 वीं एशिया मास्टर एथलेटिक्स चैंपियनशीप में दो-दो पदक जीतकर रिकार्ड बनाया है । उन्होंने हेमर थ्रू (तारा गोला फेंक) में 34।44 मीटर का रिकार्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक अर्जित किया तथा इतना ही नहीं, उन्हें डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक भी मिला है । डिस्कस थ्रों में वे 33.94 मीटर का रिकार्ड बनाये है ।


श्री शिवकुमार वर्तमान में, सातवीं बटालियन, भिलाई में प्लाटून कमांडर के पद पर कार्यरत हैं । इसके पूर्व भी वे कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए पदक जीत चुके हैं । श्री शिवकुमार को पुलिस मुख्यालय में पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन ने प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया और उन्हें यथोचित शासकीय प्रोत्साहन हेतु पहल किया है । श्री कुमार की इस उपलब्धि पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सशस्त्र बल) श्री गिरिधारी नायक, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री रामनिवास, पुलिस महानिरीक्षक द्वय श्री आर.के.विज, श्री डी. एम. अवस्थी, डीआईजी द्वय श्री पवनदेव हिमांशु गुप्ता सहित पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें बधाई दी है ।

श्री आनंद कुमार तिवारी को राष्ट्रपति पुलिस पदक


रायपुर । पुलिस महानिरीक्षक श्री आनंद कुमार तिवारी को विशिष्ट सेवा के लिए उनकी विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक से सम्मानित किया गया है । यह पदक उन्हें 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम श्री नरसिंम्हन के करकमलों से प्रदान किया गया ।


श्री तिवारी 1979 राज्य पुलिस सेवा में नियुक्त हुए । उन्हें उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए 1987 में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) एवार्ड दिया गया । उन्होंने अपने सेवा काल में नारायणपुर जैसे नक्सलवाद से ग्रसित जिले में पदस्थापना के दरमियान नक्सलियों के केशकाल दलम् के विरूद्ध मुठभेड़ में अनेक नक्सलियों को मार गिराने और हथियार बरामद कर योग्य और सक्षम पुलिस अधिकारी का परिचय दिया था । उन्होंने विभिन्न पदों पर नियुक्ति के दौरान अंत्यंत जटिल आपराधिक प्रकरणों को निराकरण किया है । वे राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (एंटी करप्शन ब्यूरो) में अधीक्षक और पुलिस महानिरीक्षक के पदों पर कार्य करते हुए अनुपातहीन संपत्ति एवं भ्रष्ट्राचार निवारण के लिए कठिन और जटिल प्रकरणों का समाधान कर चुके हैं । इससे पहले पुलिस मुख्यालय में योजना प्रबंध शाखा एवं सचिव गृह विभाग के पद पर कार्य करते हुए पुलिस के आधुनिकीकरण को एक नई दिशा दे चुके हैं । वर्तमान में वे पुलिस महानिरीक्षक (प्रशासन) मुख्यालय के पद पर पदस्थ हैं । उन्हें उन्हें वर्ष 1997 में भारतीय पुलिस पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है । इस बार उन्हें संपूर्ण सेवाकाल में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति विशिष्ट सेवा पदक से विभूषित किया गया है ।

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा की नई मुहिम - कमांडो की उपस्थिति

कमांडो वाला पहला राज्य बना छत्तीसगढ़

हमारा देश हमेशा से विविधता में एकता और शांति के सिद्धांतों को मानता आया है । वसुधैव कुटुम्बकम् हमारे संस्कारों, साँसों, रगों में बहुत अंदर तक बैठा हुआ है । परन्तु आज़ादी के बाद से ही देश के कुछ हिस्सों में आंतक का सहारा लाया जाता रहा है । हम ख़ुद इस प्रदेश में नक्सलवाद के घिनौने स्वरूप से रोज़ टकरा रहे हैं - नक्सलवाद से लोहा लेने के लिये, नक्सली आंतक को ध्वस्त करने के लिए । हमने CTJW COLLEGE का कांकेर में गठन किया है जहाँ हमारे जवान जंगल वारफ़ेयर मे निपुणता हासिल कर रहे हैं । हमने स्पेशल टास्क फ़ोर्स (STF) का गठन किया है जो नक्सली अभियानों में अग्रिम दस्ते के रूप में काम करेगी ।

पिछले कई सालों से देश के बाहर बसी ताक़तों ने हमारे देश में आंतक का घृणित नज़ारा पेश करने की भी शुरूआत की है जिससे निपटने के लिए विशेष तैयारियों की ज़रूरत है । आज जब हमारा देश, विश्व की महाशक्तियों तथा अन्य विकसित देशों के साथ अग्रणी पंक्ति में बैठने को अग्रसर है वहीं हमारे पास-पड़ौस के देशों से प्रायोजित या संचालित आतंकवाद हमारे शहरों में पाँव पसार रहा है । मुंबई में हाल में हुआ आंतकी और खूनी होली ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है ।

मुंबई की घटना के तुरंत बाद ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मा। रमनसिंह ने मन बनाया कि छत्तीसगढ़ पुलिस में भी एनएसजी के तर्ज़ पर प्रशिक्षित कमांडो फ़ोर्स होनी चाहिये । छत्तीसगढ़ पुलिस ने मुख्यमंत्री की चाहत के अनुरूप सीएएफ की तीसरी बटालियन को कमांडो बटालियन में संबर्धित करने का निश्चय किया । ऐसा इसलिए किया गया कि एक बिलकुल नई बटालियन को खड़ा करने, प्रशिक्षित करने में समय लगता ।

कमांडो की बुनियादी प्रशिक्षण भी हम यहीं देगें । एडवांस ट्रेनिंग हम एनएसजी, स्पेशल फ़ोर्स, बीएसएफ, आईटीबीएफ़ आदि के साथ करायेंगे । इस बुनियादी प्रशिक्षण मे भाग लेने वाला पहला समूह अमलेश्वर, दूर्ग में आपके सामने है, जिसकी ट्रेनिंग आज 10 जनवरी, 2009 को महामहिम के करकमलों से उद्-घाटन के साथ ही शुरू हो जायेगी । 90 दिन के प्रशिक्षण के बाद कमांडों और 40 दिन का पाठ्यक्रम CTJW (जगंलवार कॉलेज), कांकेर मे कराया जायेगा । हम एक साल में 600-700 कमांडो तैयार करने में पूर्ण सक्षम है ।

एक कमांडो की विशेषता क्या है ? शारीरिक दृष्टि से वह क़रीब-क़रीब सुपर मैन होता है । उसमें शारीरिक तथा मानसिक लचीलापन उच्च कोटि का होता है । वह गंभीर तनाव और स्टैस पर भी मानसिक तथा शारीरिक संतुलन नहीं खोता है । वह precision और घातक फ़ायरिंग कर सकता है । उसमें अपनी क्षमता के बारे मे उच्च कोटि का आत्मविश्वास होता है । हमारे पास कुछ ट्रेनर हैं जो इस तरह का प्रशिक्षण दे सकते हैं । कुछ और प्रशिक्षकों को हम एनएसजी, आटीबीपी, बीसीएफ़, स्पेशल फ़ोर्स में भेज कर प्रशिक्षित और दक्ष करायेंगे । इस कमांडो फ़ोर्स के गठन और प्रशिक्षण की गतिविधियों को मैंने अपने प्रत्य़क्ष सुपरविज़न में रखने का निर्णय लिया है ।

इस बटालियन की बल संख्या 1388 रहेगी । इसमें 2 उप सेनानी, 9 सहायक सेनानी, 15 कंपनी कमांडर, 50 प्लाटून कमांडर, 100 प्रधान आरक्षक एवं 300 आरक्षकों की अतिरिक्त होगी जिसके लिये शासन के पास स्वीकृति हेतु जा रहे हैं । उच्च स्तरीय अस्त्र-शस्त्र और उपकरण की भी हम फेहरित बना रहे हैं और उन्हें ख़रीदने की भी हम पहल कर रहे हैं । कुछ ही महानों में, हम आप एक जांबाज कमाडों की टुकड़ी आपके सामने पेश करेंगे जो किसी भी आंतकी हमले मे कारगर हस्तक्षेप कर उसे रोकने, पस्त और ध्वस्त करने मे सक्षम होगा ।
० विश्वरंजन
पुलिस महानिदेशक

सिंगावरम मुठभेड़ को फर्जी बताना साई वार का हिस्सा – राहुल शर्मा

दुष्प्रचार व चालाकी नक्सली का हथियार
सलवा जुडूम और एसपीओ को बदनाम करने का सुनियोजित षडयंत्र
दंतेवाड़ा । दंतेवाड़ा जिले के सिंगावरम में हुई घटना पूरी तरह से पुलिस-नक्सली मुठभेड़ ही है । इस पर उठाये गये प्रश्न बेबुनियाद है जो नक्सलियों के प्रचार तंत्र के सुनियोजित तरीके का हिस्सा है । नक्सली इसके पूर्व भी इसी तरह का आरोप लगाकर पुलिस के हर जायज और कानूनी कार्यवाही को कटघरे में खड़े करते रहे हैं । यह सुनियोजित साई-वार है जो नक्सली रणनीति और प्रबंधन का अहम् हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मात्र प्रजातांत्रिक व्यवस्था सहित पुलिस की कार्यप्रणाली को जनविरोधी करार देकर जनमत को बरगलाते रहना है । विगत 8 जनवरी को सिंगावरम मुठभेड़ के संदर्भ में कुछ नक्सली हितैषियों द्वारा दुष्प्रचारित कहानी के पीछे नक्सलियों, उनके समर्थकों और उनसे जुड़ी संस्थाओं की प्रमुख भूमिका है । लगभग हर सफल एनकांउटर घटनाओं से नक्सलियो का मनोबल गिरता है और उनके रिक्रुटमेंट ड्राइव की सुनियोजित कार्यवाही भी दुष्प्रभावित होती है ।

पुलिस अधीक्षक दंतेवाड़ा श्री राहुल शर्मा ने सिंगावरम् की घटना को लेकर दुष्प्रचार करने वालों को नक्सलियों की चाल बताते हुए कहा है कि सिंगावरम के मुठभेड़ पुलिस-नक्सली मुठभेड़ थी । यह कहना पूर्णतः झूठ है कि वहाँ पुलिस ने ग्रामीणों की मारा है । ऐसा कहना सलवा जुडूम और एसपीओ को बदनाम करना है । क्योंकि नक्सली यह बखूबी जानते हैं कि धूर और घोर नक्सली क्षेत्रों में एसपीओ नक्सली गतिविधियों का पथ प्रदर्शन करते हैं । जो ग्रामीण नक्सलियों के भय और आतंक से ग्रस्त होकर उनके हाथों की कठपुतली बनने को बाध्य है क्या वे फिर से उनके भय और दबाब मे क्योंकर नहीं कह सकते कि वहाँ ग्रामीण मारे गये हैं ।

इस मुठभेड़ में जिसमें नक्सलियों की मिलिट्री-प्लाटून एवं जन-मिलिशिया के 50-60 नक्सलियों के साथ जिला पुलिस बल एवं एसपीओं के जवानों ने बहादुरी का परिचय देते हुए मुकाबला किया । उस दिन सिंगावरम में नक्सली एवं जन-मिलिशिया द्वारा आगामी 26 जनवरी को काला दिवस मनाने की रणनीति तय करने के लिए बैठक आयोजित थी, जिसे पुलिस द्वारा ध्वस्त करते हुए नक्सली-षड़यंत्र को विफल कर दिया गया था । घटना स्थल की सर्चिंग पर अंधेरे के बाद भी 15 नक्सलियों के मृत शरीर की गणना की गई थी । उन सभी नक्सलियो के फोटोग्राफ़ भी लिये गये थे । यह एक तरह से विगत 2-3 वर्षों की सबसे बड़ी पुलिस रिकव्हरी है, जिसमे भारी मात्रा में गोला बारूद तथा अन्य सामग्रियों की बरामदगी हुई थी । इसका कारण नक्सली रणनीति मे हार्ड कोर यानी मिलिट्री दलम के मुख्य नक्सली हमेशा जनमिलिशिया के दो घेरों के बीच चलते हैं । अतः इन्हीं के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई, किसी भी घटना में सबसे पहले जन-मिलिशिया कैडर होता है एवं उनके पीछे हार्ड कोर नक्सली अर्थात् मिलिट्री प्लाटून होती है जो तात्कालिक एवं आकस्मिक परिस्थितियों के अनुसार मोर्चा लेकर मुकाबला करने अथवा वहाँ से पीछे हटने का फैसला करती है । सिंगावरम् में भी यही हुआ और डेढ़ से दो घंटे की मुठभेड़ के बाद रणनीतिक आदत के अनुसार मिलिट्री प्लाटून पीछे हट गई । यह दीगर बात है कि पुलिस द्वारा अत्याधुनिक रायफ़लें बरामद नहीं की जा सकी थी । न ही उसी समय लाशों को कब्जे में लेकर थाना नहीं लाया जा सका था । ऐसा तत्कालीन परिस्थितियों में संभव नहीं था क्योंकि 15 शवों को लाने के लिए कम से कम 60 पुलिस कर्मियों की आवश्यकता होती । इसके अलावा यह टीम लगातार मुठभेड़ के कारण बेहद थकी हुई भी ती । उस समय 12 एसपीओ घायल अवस्था में थे जिन्हें सुरक्षित अस्पताल पहुँचाने कहीं ज़्यादा ज़रूरी था ।

यहाँ यह भी काबिलेगौर है कि आम तौर पर जन मिलिशिया कैडर के पास टंगिया, तीर-धनुष तथा सुअर बम से लेकर भरमार हथियार होते हैं जिसकी पुलिस द्वारा रिकव्हरी की गई है । मुठभेड़ में मिलिट्री-प्लाटून की मौजूदगी इस बात से प्रमाणित होती है कि ऐन मौके पर 5 हैंड ग्रिनेड़, 6 किली जिलेटिन एवं बम बनाने में उपयोग लायी जाने वाली सामग्रियों के साथ 10 नग पिट्ठू, 2 देशी टू इंट मोर्टार बरामद हुए हैं । यहाँ यह जान लेना ज़रूरी है कि विगत 2007 के दिसम्बर माह में थाना गोलापल्ली से मात्र 4 किमी की दूरी पर 12 जवान बीमार पुलिस साथियों को ले जाने के दौरान नक्सली मुठभेड़ में शहीद हो गये थे, जिनके मृत शरीर को घटना स्थल से निकालने में पुलिस को पूरे 48 घंटे मशक्कत करनी पड़ी थी । यह घटना स्थल भी थाने से जंगली रास्तों से तकरीबन 15 किमी की दूरी पर है, जो अत्यंत ही धुर नक्सली संवेदनशील क्षेत्र है।

मुठभेड़ समाप्त होने पर शाम हो चुकी थी । उस क्षेत्र में पिछले 48 घंटे से ऑपरेशन पर गई पुलिस पार्टी बुरी तरह थक चुकी थी, अतः घटना स्थल पर मौजूद पुलिस कमांडर ने मुठभेड़ मे घायल 3 जवानों, एसपीओ जिनमें से 2 जवानों के पैर को छूती हुई गोली निकली थी एवं 1 जवान के हाथ के पास ग्रिनेड़ फटने से घायल हुआ था, को प्राथमिक उपचार हेतु निकालना ज्यादा उचित समझा तथा घटना स्थल की सर्चिंग कर बरामद साम्रगी को एकत्रित कर पुलिस बल को शाम 6.30 बजे तक सुरक्षित थाना गोलापल्ली पहुँचाया । घायल जवानों को दंतेवाड़ा से प्राथमिक उपचार पश्चात सुकमा सीएससी में भर्ती कराया गया है, ताकि उनके परिजन उनकी अच्छी तरह देखरेख कर सकें ।

पुलिस अधीक्षक दंतेवाड़ा ने आगे कहा कि अगले दिन हेलीकॉप्टर से 3 जवानों को निकाला गया तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा घटना स्थल पहुँचकर घटनाक्रम का ज़ायज़ा लिया गया और बॉड़ी रिकव्हर करने के लिए अधिक फोर्स के साथ पुलिस पार्टी को रवाना किया गया । इसी बीच आंध्रप्रदेश से पत्रकारों का दल प्रातः घटना स्थल पहुँचकर ग्रामीणों से बातचीत करने तथा मृतकें के फोटोग्राफ्स लेने के बाद वहाँ से बिना पुलिस ताने आए वापस लौट गये । वहाँ पर मौजूद ग्रामीणों द्वारा शव को पुलिस पार्टी के पहुँचने के पूर्व ही अपने-अपने गाँव ले गये । इसके बाद दंतेवाड़ा से एक्सीक्यूटिव मजिस्ट्रेट तथा डॉक्टरों का दल भेजा गया जिनके द्वारा 11 नवंबर को घटना स्थल पर जाकर दफनाये गये शवों कको निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें 1 शव को निकालने की कार्यवाही की गई था डॉक्टर द्वारा गन शॉट से मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है ।

इतनी ही नहीं, पुलिस अधीक्षक दंतेवाड़ा ने स्वयं घटना की संवेदनशीलता को भाँपते हुए स्वयं कलेक्टर से मजिस्ट्रियल जाँच कराने का भी आग्रह किया है जिस पर कार्यवाही शुरू की जा रही है जिससे वास्तविकता तथ्यों सहित सबके सामने आ सके ।

16 नक्सलियों को मार गिराया पुलिस ने

साल के प्रारंभ में ही मिली पुलिस को बड़ी सफलता
डीजीपी ने दी शाबासी
रायपुर । छत्तीसगढ़ राज्य की जनता को नक्सलियों के भय और आतंक से मुक्त कराने की मुहिम अब रंग लाने लगी है । पुलिस बल अपनी संपूर्ण ऊर्जा और आत्मविश्वास से नक्सलियों की राज्य से सफ़ाई के लिए कटिबद्ध है । पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन की रणनीति और दिशा निर्देशन में जिला पुलिस दंतेवाड़ा को आज एक बड़ी सफलता मिली है, जिसमें 16 खूँखार नक्सली मारे गये । पुलिस महानिदेशख ने धूर बस्तर में जान की परवाह न कर नक्सलियों को मार गिराने वाले पुलिस अधिकारियों को शाबासी दी है ।

जिला पुलिस दंतेवाड़ा द्वारा 6 जनवरी 09 को कांकेर लंका से एक गस्ती दल जिसमें लगभग 80 एसपीओ एवं जिला पुलिस बल के जवान सम्मिलित थे, नक्सली सर्चिंग पर रवाना गया । आज 8 जनवरी को उक्त गस्ती दल को वापस आना तय़ था । वापसी के दौरान इस दल को सिंगाराम नाले के पास नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों की बैठक लिये जाने की सूचना प्राप्त हुई । बस क्या था । दल के सिपाही और अधिकारी ने बिना चूक किये सिंगाराम नाले की ओर कूच किया । सिंगाराम नाला पहुँचना मात्र था, नक्सलियों के द्वारा आदतन पुलिस बल पर हमला बोल दिया गया। इस पर पुलिस बल ने भी जवाबी कार्यवाही शुरू कर दी । दोनों तरफ़ से लगभग दो घंटे यानी 3 बजे से 5 बजे तक मुठभेड होने के पश्चात नक्सली मैदान छोड़कर भाग निकले । पुलिस बल के द्वारा जब सर्चिंग की गई तो वहाँ 15 नक्सलियों के मारे जाने की खबर लगी है । मुठभेड में 3 नक्सलियों को भी नक्सलियों के हथियार से घायल होना पड़ा । अंधेरा होने के कारण तथा घायल एसपीओ को तत्काल गोलापल्ली पहुँचाने के कारण नक्सलियों के शब बरामद तत्काल नहीं बरामद किये जा सके । समाचार लिखने तक पुलिस इस मुहिम में जुटी हुई है । पुलिस अधीक्षक इस अभियान की निजी तौर पर निगरानी कर रहे हैं । घटना स्थल पर नक्सलियों के 5 बंदूक, 5 हैंट ग्रेनेड, 10 पिट्ठू, 2 देशी मोर्टार सहित कम से कम 5 किलोग्राम जिलेटिन बरामद किया गया है ।

इसी तरह एक दूसरी सफलता में जिला पुलिस बीजापुर को 1 नक्सली को मार गिराने में सफलता मिली है । आज 8 जनवरी को ही जिला बीजापुर थाना से पुलिस बल, होमगार्ड एवं एसपीओ की एक संयुक्त टीप नक्सली गश्ती के लिए निकली हुई थी और लौटते समय क़रीबन पाँच बजे मनकेली पहाड़ी के पास अज्ञात सशस्त्र वर्दीधारी नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर अंधाधूंध फायरिंग करनी शुरू कर दी । मौका ए वारदात जवाबी फायरिंग में एक नक्सली को मौत के घाट उतार दिया गया । वारदात के बीच ही नक्सलियो का दल भाग निकला । उधऱ दूसरी ओर बीजापुर थाना अंतर्गत पोस्ट पामलवाया से सवेरे 10 बजकर 15 मिनट पर एपीसी अंजुलिस मिंज के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, जिला पुलिस बल तथा एसपीओ की नक्सली गश्त के लिए संयुक्त टीम निकली । गश्ती के दरमियान ही 1 बजे दोपहर पोंजेर नाला के पास प्रेशर बम के फटने से जिला पुलिस बल का आरक्षक प्रवीण कुमार कश्यप को साधारण चोटें आयी हैं । उन्हें ईलाज हेतु शासकीय अस्पताल बीजापुर में भर्ती कराया गया है। श्री कश्यप ख़तरे से बाहर हैं ।

एससी, एसटी अधिनियम में लापरवाही करने वाले विवेचना अधिकारी भी दंडित होंगे


अब राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के शोषण और उनके विरूद्ध होने वाले अपराधों पर लगाम कसने के लिए ऐसे प्रकरणों की विवेचना हर हालत में एक माह के भीतर करके चालान प्रस्तुत किया जायेगा । पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन के मार्ग निर्देशन में पुलिस महानिरीक्षक, (अजाक) आर। सी. पटेल द्वारा आज पुलिस मुख्यालय में संपन्न राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक में सभी जिलों के नोडल अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि एससी, एसटी अधिनियम के तहत जो विवेचना अधिकारी लापरवाही बरतेंगे उन्हें धारा 4 के तहत दंडित किया जायेगा ताकि समय सीमा के भीतर ऐसे वर्गों के प्रताडित लोगों के अधिकारों का संरक्षण किया जा सके ।

सभी नोडल अधिकारियों को नये सिरे से निर्देशित किया गया है कि अजा, अजजा, पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं के विरुद्ध कारित अपराधी प्रकरण में यदि कोई अपराधी न्यायालय से छूट जाता है तथा उसके द्वारा पुनः ऐसा कोई अपराध कारित किया जाता है तो धारा पाँच के तहत उसके दंड मे वृद्धि करायी जाये । ऐसे प्रकरणों में धारा 10 के तहत आरोपी के विरूद्ध जिला बदर की कार्यवाही भी की जा सकती है। बैठक में सारे लंबित प्रकरणों पर त्वरित कार्यवाही करते हुए चालान प्रस्तुत करने हेतु भी कड़ा निर्देश दिया गया ।

पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि जहाँ बड़ी संख्या में इन वर्गों का शोषण या उनके खिलाफ़ अपराध होते हैं या ऐसी संभावना बनी रहती है उन क्षेत्रों को चिन्हाकित करके तत्काल परिलक्षित क्षेत्र घोषित किया जावे तथा ऐसे परिलक्षित क्षेत्रों में नोडल अधिकारियों की पदस्थापना, अतिरिक्त बल, अवैयरनेस कैंप, शांति समिति की बैठकें आयोजित कर उनके संरक्षण एवं विकास पर आवश्यक ध्यान दिया जावे । बैठक में दुर्ग, बिलासपुर, रायगढ़, राजनाँदगाँव, जाँजगीर, कोरबा, कोरिया, कबीरधाम जैसे परिलक्षित क्षेत्रों के नये प्रस्ताव बनाकर आवश्यक रूप से भेजने का निर्णय लिया गया ।
श्री पटेल द्वारा सभी जिला अधिकारियो को निर्देशित किया गया कि अजजा और जजा वर्ग के फ़रियादी द्वारा लाया गया एफआईआर को अनिवार्यत पंजीबद्ध किया जाये तथा बिना राजीनामा के ऐसे प्रकरणों का चालान एक माह के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत किया जावे । अधिकारियों को टोनही डायन आदि मामलों की निरंतर निगरानी तथा राज्य में विभाग द्वारा शुरू किये गये अंधविश्वास उन्मूलन अभियान स्वयंसेवी भाव से चलाने के संबंध में भी निर्देश दिया गया । इसके लिए जिला, अनुविभाग, थाने स्तर पर टास्क फोर्स गठित कर स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं के माध्यम से राज्य भर में अंधश्रद्धाओं और अंधविश्वासों के खिलाफ सामाजिक अभियान चलाने हेतु अभिप्रेरण किया गया ।

नक्सलवाद जैसी समस्या का सामना पूरी कर्तव्यनिष्ठा से करें – गृहमंत्री




नक्सलवाद जैसी गंभीर चुनौतियों का मुकाबला अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करना होगा और इस दिशा में पुलिस द्वारा कर्तव्यपालन के दौरान आने वाली सभी समस्याओं के समाधान के लिए राज्य सरकार द्वारा हर संभव क़दम उठाये जा रहे हैं । भविष्य में भी राज्य शासन इसके लिए सदैव कटिबद्ध रहेगी । गृहमंत्री श्री ननकीराम कँवर ने पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय, माना में 26 वें नव आरक्षक बुनियादी प्रशिक्षण सत्र के नव आरक्षकों के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के आसंदी से नव आरक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य में नक्सली समस्या के साथ आम नागरिकों के जीवन में शांति और सुरक्षा की भावना बनाये रखने में आरक्षकों की महती भूमिका है, और यही विकास के लिए ज़रूरी है । उक्त अवसर पर पुलिस महानिदेशक श्री विश्वरंजन ने अपने संबोधन में कहा कि पुलिस को बेशक अपने काम को अंजाम देने में अनेक तरह के अवरोधों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है लेकिन हमें अपने लक्ष्यों से नही भटकना चाहिए । उन्होंने नव आरक्षकों को प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें पूरी सतर्कता, मुस्तैदी से सेवा करते हुए आम नागरिकों का विश्वास अर्जित करना होगा । उन्होंने नव प्रशिक्षित आरक्षकों के उच्च कोटि प्रदर्शन के लिए प्रशिक्षण शाला के प्रशिक्षकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।


इसके पूर्व दीक्षांत परेड़ समारोह में कुल 305 आरक्षकों ने भाग लिया जिन्हें कार्यक्रम के दरमियान श्री के। सी. अग्रवाल, पुलिस अधीक्षक, पीटीएस, माना ने पूर्ण ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा एवं प्राण प्रण से सेवा करने की शपथ दिलायी । उक्त अवसर पर प्रशिक्षण काल के दरमियान विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट भूमिका निर्वहन के लिए कई नव आरक्षकों को गृह मंत्री ने प्रशंसा पत्र प्रदान कर हौसला आफ़जाई भी की । कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन श्री राजीव श्रीवास्तव, पुलिस महानिरीक्षक ने किया ।


इस विशिष्ट आयोजन में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री गिरिधारी नायक, पुलिस महानिरीक्षक (छसबल एवं प्रशिक्षण) श्री राजीव श्रीवास्तव, उप पुलिस महानिरीक्षक (छसबल, भिलाई) श्री एम.एस. तोमर, गृह सचिव श्री मनोहर पांडेय, पुलिस अधीक्षक रायपुर श्री अमित कुमार सहित सैकड़ों वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एव कर्मचारी, संस्था के प्रशिक्षण गण, गणमान्य नागरिक, मीडियाकर्मी उपस्थित थे।

प्रगति के पथ पर छत्तीसगढ़ पुलिस

नव वर्ष के शुभारंभ की सुबह आत्मावलोकन की सुबह है। वर्ष 2008 समय के सनातन नियम के अनुसार पुलिस विभाग के लिये नये अनुभवों तथा उपलब्धियों का रहा। प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के सक्षम नेतृत्व में राज्य पुलिस ने भरसक प्रयास किया कि यह विकास की अभिकर्ता के रूप में सामने आए। राज्य में मौजूदा हालात राज्य पुलिस के लिये चुनौतीपूर्ण है और पुलिस बल ने बखूबी प्रभावी कार्य कर दिखाया है। राज्य पुलिस ने इस वर्ष अधोसंरचना के उन्नयन हेतु विशेष प्रयास किए हैं। अपराधों के अन्वेषण, अभियोजन, अपराधों की रोकथाम तथा शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिये पर्याप्त व्यावसायिक दक्षता का प्रदर्शन किया है। राज्य पुलिस व्यावसायिक दक्षता की वृद्धि करने और कार्यक्षमता बढ़ाने के लिये वर्ष 2008 में उत्साहजनक प्रयास किये हैं।

मानव संसाधन में वृद्धि हेतु स्वीकृतियाँ

मानव संसाधन में अभिवृद्धि के अनुक्रम में वर्ष 2008 में विभिन्न संवर्ग के कुल 2660 नवीन पदों की स्वीकृति दी गई है। जिसमें, 03 नवीन अजाक थाना, 05 चौकी तथा 02 चौकियों का थाने में उन्नयन हेतु 244 पद, गृह (पुलिस) विभाग से संबंधित माननीय न्यायालय में लंबित प्रकरणों एवं समय पर माननीय न्यायालय में जवाब प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण के गठन हेतु 44 पद, नक्सल क्षेत्र के थाना एवं चौकियों के प्रभावी नियंत्रण हेतु पुलिस अनुविभागीय अधिकारी एवं सहायक अमले के 03 पद, गृह (पुलिस) विभाग का कार्य क्षेत्र व्यापक होने के कारण छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल हेतु महानिदेशक का 01 पद, नक्सल क्षेत्रों के नवीन थाना/चौकी एवं अन्य आवासीय/प्रशासकीय भवनों के निर्माण हेतु पायोनियर कंपनी के गठन हेतु 142 पद, अति संवेदनशील प्रदेश होने के कारण राज्य के प्रथम नागरिक महामहिम राज्यपाल महोदय एवं माननीय मुख्यमंत्री महोदय की सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था हेतु 212 पद, प्रदेश के समूचे नक्सली गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु 02 भारत रक्षित वाहिनी बस्तर क्षेत्र के अंतर्गत 15वी, 16वीं वाहिनी हेतु 2014 पद, नक्सल क्षेत्र के अंतर्गत संवेदनशील, अतिसंवेदनशील थाना/चौकी एवं फील्ड में पदस्थ अधिकारी एवं कर्मचारियों को क्रमश: 15: एवं 20: नक्सली भत्ता की स्वीकृति प्रदान की गई है।

पदोन्नतियाँ :-
पुलिस विभाग में लगभग सभी संवर्गों के पुलिस अधिकारियों को पदोन्नति प्रदान की गई है। उप पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों को करीब 3 वर्ष से अधिक समय से लंबित उच्च वेतनमान की स्वीकृतियाँ शासन द्वारा जारी की गई है। कुल 16 निरीक्षकों को उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्नति दी गई। सभी संवर्गों के लिपिकीय कर्मियों को भी पदोन्नति प्रदान की गई है। इसके अलावा 135 सहायक उप निरीक्षको एवं 130 उप निरीक्षकों एवं 63 सउनि (एम) को क्रमश: उप निरीक्षक, निरीक्षक व उप निरीक्षक (अ) के पद पर पदोन्नति हेतु योग्यता सूची जारी कर दी गई है जिन्हें शीघ्र पदोन्नतियाँ दी जावेगी ।

सीधी भर्ती

वर्ष 2008 में पुलिस में सीधी भर्ती के समस्त पदों पर भर्तियाँ की गई है। थानों के अपग्रेडेशन के अंतर्गत द्वितीय चरण के तहत स्वीकृत लगभग 4000 आरक्षकों की भर्ती की जा चुकी है । इसी प्रकार 380 उप निरी0/सूबेदार/प्लाटून कमाण्डर की सीधी भर्ती की प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है। लोक सेवा आयोग से चयनित होकर 41 उप पुलिस अधीक्षक नियुक्ति पश्चात पुलिस अकादमी चन्दखुरी में प्रशिक्षणरत् हैं। पुलिस प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए 02 योग शिक्षक भी नियुक्त किए गए हैं जो पुलिसकर्मियों को योग प्रशिक्षण दे रहे हैं, जिससे पुलिस कर्मियों के स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ उन्हें मानसिक तनाव को कम करने में सहायता मिल रही है।

पुलिस बजट -
राज्य शासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2008-09 हेतु पुलिस विभाग हेतु मूल बजट में रू0 582.62 करोड़ एवं प्रथम अनुपूरक अनुमान में रू0 93.03 करोड़ इस प्रकार कुल 675.65 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। नवम्बर 2008 की स्थिति में प्रावधानित बजट में से रू0 423.36 करोड़ का व्यय हो चुका है अथाZत उपयोगिता 62.66 प्रतिशत पूर्ण हो चुका है।

साधन सुविधाएँ :-

• आधुनिकीकरण योजना के अंतर्गत टाटा सूमो विक्टा 05, ट्रेक्टर मय ट्राली 05, जीप 53, बोलेरो इन्वेडर 05, बुलेट प्रुफ महिन्द्रा जीप 01, हाइड्रोलिक क्रेन 01, जेल वाहन 02, वज्र वाहन 10, आर0आई0वी0 02, मोटर सायकिल 100, 52 सीटर बस 04, वाटर टैंकर 04 नग क्रय कर इकाईयों को आबंटित किया गया है ।
• योजना अंतर्गत उपकरण/सामग्री सर्च लाईट 321 नग, क्वायर मेट्रेस 350 नग, फोिल्डंग कॉट 350 नग, फोटोकापियर 62 नग, जनरेटर 2.5 केवीए 14 नग, डिजीटल डुप्लीकेटिंग मशीन 04 नग, नाईट विजन गॉगल 16 नग, हेण्ड ग्रेनेड ट्रेनिंग सिमुलेटर 05 सेट, इमरजेंसी लाईटिंग सिस्टम 12 नग, लेपटॉप कम्प्यूटर 12 नग, डेस्कटॉप कम्प्यूटर 70 नग, 110 नग लेजर प्रिंटर, टी0वी0 विथ डीवीडी 10 नग, कम्प्यूटर टेबल एवं चेयर 88 नग, जनरेटर 10 केवीए 09 नग क्रय कर इकाईयों को आबंटित किया गया है ।
• राज्य बजट के अंतर्गत 13वीं वाहिनी एवं अन्य इकाईयों हेतु जीप 18 नग, मिनी बस 13 नग, वज्र वाहन 03 नग, बुलेट प्रुफ बोलेरो 02 नग, बुलेट प्रुफ जीप 01 नग, सर्च लाईट 25 नग, जनरेटर 03 नग, विन्डो कूलर 13 नग, क्वायर मेट्रेस 380 नग, जनरेटर 10 केवीए 20 नग क्रय किया जाकर इकाईयों को आबंटित किया गया है। 13वीं वाहिनी हेतु फर्नीचर एवं कार्यालय उपकरण कम्प्यूटर, टाईपराइटर, डुप्लीकेटिंग मशीन, प्रोजेक्टर, जनरेटर, कूलर, आलमारी, फेक्स, फोटोकापियर क्रय किया जाकर प्रदाय किया गया है ।

पुलिस बल का आधुनिकीकरण -

वर्ष 2008 में पुलिस बल आधुनिकीकरण योजना 2007-08 अंतर्गत भारत सरकार, गृह मंत्रालय से रू0 28.10 करोड़ की स्वीकृति प्राप्त हुई है। प्राप्त आबंटन से विभिन्न इकाईयों में प्रशासकीय भवन, आवासीय भवनों का निर्माण कराया जा रहा है। वाहन, अस़्त्र-शस्त्र, सुरक्षा एवं अन्य उपकरण, प्रशिक्षण उपकरण, एफएसएल उपकरण तथा दूरसंचार उपकरणों का प्रबंध किया जा रहा है। स्वीकृत सामग्री/उपकरणों की क्रय कार्यवाही त्वरित गति से जारी है। स्पेशल ग्रांट के तहत नक्सल समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा अतिरिक्त रूप से स्वीकृत किए गए रू0 15.00 करोड़ के अस्त्र-शस्त्र एवं रू0 4.11 करोड़ के 5 नग माईन प्रोटेक्टेड वाहन क्रय किये जा रहे हैं। राज्य शासन द्वारा दिये गये अनुदान के तहत रू0 6.41 करोड़ के अत्याधुनिक हथियार विदेशों से आयात किये जा रहे हैं।

प्रशासकीय एवं आवासीय भवनों का निर्माण

 12 वे वित्त आयोग के अंतर्गत
जंगलवार फेयर कालेज कांकेर के प्रशासकीय/आवासीय भवन निर्माण हेतु 807।83 लाख, पुलिस अकादमी चन्दखुरी के प्रशासकीय/आवासीय भवन निर्माण हेतु रूपये 803.015 लाख, पीटीएस माना के उन्यन हेतु प्रशासकीय भवन निर्माण हेतु रूपये 131.00 लाख, पीटीएस राजनादगांव के उन् प्रशासकीय/आवासीय भवन निर्माण हेतु 57.82 लाख, एपीटीएस बारसूर केम्प जगदलपुर के प्रशासकीय/आवासीय भवन निर्माण हेतु रूपये 57.29 लाख, पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र बोरगाँव के प्रशासकीय /आवासीय भवन निर्माण हेतु 29.00 लाख, को-आर्डिनेशन सेन्टर रायपुर हेतु 213.31 लाख, को-आर्डिनेशन सेन्टर बस्तर हेतु 203.27 लाख, को-आर्डिनेशन सेन्टर सरगुजा हेतु 203.27 लाख, नवीन पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय मैनपाट सरगुजा के प्रशासकीय भवन निर्माण हेतु रूपये 300.00 लाख का आवंटन जारी किया गया है।

आधुनिकीकरण योजना के अंतर्गत

1 पुलिस लाईन, 3 थाना भवन, 20 अराजपत्रित आवासगृह, 80 प्रधान आरक्षक आवास गृहों के निर्माण हेतु रू0 494।00 लाख की स्वीकृति, पुलिस थानों में कंप्यूटरीकरण हेतु सीपा योजना के अन्तर्गत 100 थानो मे 10 ग् 10 पक्का रूम निर्माण हेतु 45.00 लाख का आवंटन जारी, पायलेट प्रोजेक्ट के अन्तर्गत जिला बीजापुर हेतु 1520.21 लाख एवं जिला दन्तेवाडा हेतु 1068.40 लाख की स्वीकृति भारत सरकार से जारी, राज्य योजना मंडल के अन्तर्गत 10.00 करोड लागत से प्रशासकीय भवन निर्माण हेतु स्वीकृति जारीं।

राज्य बजट के अंतर्गत

6.34 करोड की लागत से विभिन्न थाना/चौकियों एवं क्वार्टर गार्ड के कन्सर्टिना क्वायल फेंसिंग एवं एम एस फेब्रिकेटेड गेट निर्माण की स्वीकृति, 11 बटालियनों में एक-एक एवं जिलों के पुलिस लाईनों में दो-दो कुल 51 सुलभ शौचालय निर्माण हेतु रूपये 434.52 लाख की स्वीकृति, 10 बटालियन एवं अन्य स्थानों में ओवर हेड टेन्क निर्माण हेतु रूपये 50.00 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति एवं 16 थाना एवं 01 चौकी भवन निर्माण हेतु रूपये 359.26 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति जारी।

कानून व्यवस्था की उत्कृष्ट स्थिति :-
वर्ष 2008 में प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पूर्णत: नियंत्रण में रही। विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय, राजनैतिक व स्थानीय समस्याओं को लेकर जूलूस, धरना/प्रदर्शन, आमसभा इत्यादि आंदोलन किये गये, जो शातिपूर्ण रहे। राज्य में साम्प्रदायिक सौहाद्रZ पूणत: कायम रहा। प्रदेश की जनता ने कानून व्यवस्था बनाये रखने में सहयोग दिया। प्रदेश में राज्य विधान सभा चुनाव दिनांक 14.11.2008 से 13.12.2008 तक शांतिपूर्ण सम्पन्न हुए। इसके अतिरिक्त कृषक, छात्र, शासकीय सेवकों एवं श्रमिक संगठनों के आंदोलन शांतिपूर्ण रहे। राज्य का पुलिस तंत्र जनसमस्याओं के निवारण हेतु कृतसंकल्प है। प्रदेश के 2 करोड़ 8 लाख नागरिकों का विश्वास राज्य की पुलिस पर और मजबूत हुआ है।

कल्याणकारी योजनाएँ
सामुहिक बीमा :- राज्य शासन द्वारा नक्सली हिंसा में शहीद, अपंग एवं घायल होने वाले पुलिस अधिकारियों के परिवारों को बीमा क्लेम की राशि 211 शहीदों के लिए रू0 21.10 लाख का भुगतान किया गया है। बीमा दावों के भुगतान में आ रही असुविधाओं को दूर करने के उद्वेश्य से राज्य शासन द्वारा अब सामूहिक बीमा विकल्प विशेष अनुदान योजना 2008 दिनांक 29.05.08 से लागू की गई है। इस हेतु राज्य शासन द्वारा 5.00 करोड़ रूपये की राशि स्वीकृत की गई है। अब तक 28 प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है।

परोपकार निधि :-
परोपकार निधि में कमचारियों के वेतन से अंशदान एवं शासन से प्राप्त अनुदान की राशि से मृतक के आश्रित परिवार को रू0 20,000/- एवं नक्सली हिंसा में शहीदों के आश्रितों को रू0 1.00 लाख की राशि अनुदान के रूप में दी जाती है। इसके अंतर्गत 22 शहीदों के आश्रितों को रू0 22.00 लाख का भुगतान किया जा चुका है।

सम्मान निधि :-
छत्तीसगढ़ पुलिस के समस्त अधिकारियों द्वारा अपने एक दिन के वेतन से शहीद सम्मान निधि का गठन किया गया है जो शहीद स्मृति दिवस 21 अक्टूबर, 2008 से प्रारंभ की गई है । जिसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ पुलिस के शहीद होने वाले पुलिस अधिकारी के परिवार को राशि रू0 1.00 लाख पृथक से सम्मान निधि के रूप में स्वीकृत किए जाते हैं। अब तक 8 शहीद पुलिस अधिकारियों के आश्रित परिवारों को इस निधि के अंतर्गत भुगतान किया गया है ।

विशेष अनुग्रह अनुदान :-
छत्तीसगढ़ में नियोजित किए गए अन्य अर्द्ध सैनिक बलों के अधिकारियों के शहीद होने की स्थिति में विशेष अनुग्रह अनुदान राशि स्वीकृत किए जाने हेतु पूर्व में राज्य शासन द्वारा स्वीकृत का सरलीकरण करते हुए अब राशि रू0 3।00 लाख प्रत्येक शहीद के आश्रित परिवार को स्वीकृत किए जाने के अधिकार पुलिस महानिदेशक को प्रदाय किए गए हैं जिससे अब अपेक्षाकृत शीघ्र यह राशि शहीद के आश्रित परिवार को सुलभ कराई जा सकेगी।

शहीदों के आश्रितों को अनुकम्पा नियुक्ति हेतु नियमों का शिथिलीकरण :- पुलिस विभाग की पहल पर राज्य शासन द्वारा शहीदों के आश्रितों को अनुकम्पा नियुक्ति दिए जाने बाबत् नियमों का शिथिलीकरण किया गया है जिसके तहत अब शहीद के परिवार के किसी अन्य सदस्य के शासकीय सेवा में होते हुए भी एक अन्य सदस्य को अनुकम्पा नियुक्ति की पात्रता होगी। इसी प्रकार शैक्षणिक योग्यता में भी आवश्यक छूट देने के अधिकार पुलिस महानिदेशक को दिए गए हैं तथा अनुकम्पा नियुक्ति हेतु आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने हेतु आवेदन-पत्र की समय-सीमा 6 माह के स्थान पर 01 वर्ष की गई है।

अपराध अनुसंधान

• पुलिस थानों के कंप्यूटराईजेशन की ओर बढ़ते कदम :- पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली को नागरिकों हेतु सुविधाजनक बनाने तथा पारदर्शिता लाने के उद्देशय से एन.आई.सी. द्वारा भारत सरकार की सीपा योजना के प्रथम चरण के अंतर्गत राज्य के 10 प्रतिशत थानों में कम्प्यूटरीकरण का कार्य प्रारंभ किया गया था। इसी तारतम्य में राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा सी.सी.टी.एन.एस. योजना प्रारंभ की जा रही है जो कि सीपा का अत्याधुनिक एवं समेकित रूप है सी.सी.टी.एन.एस. में सीपा के अतिरिक्त पुलिस विभाग में प्रचलित कम्प्यूटरीकरण की अन्य योजनाओं को भी समाहित किया गया है। सी.सी.टी.एन.एस. के नोडल आफिसर की नियुक्ति कर दी गई है एवं प्रक्रिया जारी है।

• फिंगर प्रिंट शाखा की उपलब्धि :- ब्यूरो द्वारा वर्ष 2008 में 10 विवादग्रस्त दस्तावेजों, 56 वस्तु प्रकरणों, 1072 अंगुल चिन्ह अभिलेख पिर्णयों, 1736 अन्वेषण पिर्णयों, 41 निगरानी बदमाशों के अंगुल चिन्हों का वर्गीकरण कर प्रकरण निराकृत किए गए।

• साईबर लेब की स्थापना :- अपराध अनुसंधान विभाग के अंतर्गत कार्यरत साइबर सेल में हार्ड डिस्क से मिटाए गए डाटा के पुर्ननिर्माण के लिए विशेष साफ्टवेयर (ECASE V5.0) क्रय किया गया है जिसकी सहायता से जाली अंकसूची प्रकरण में महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की गई ।

• फोटोग्राफी :- फील्ड स्तर पर अपराध अनुसंधान को वैज्ञानिक रूप प्रदान करने हेतु आधुनिकीकरण योजना के अंतर्गत राज्य के 175 थानों को फिक्स फोकस कैमरे प्रदाय किए गए हैं, 16 जिलों को विडियो कैमरे तथा 14 जिलों को डार्क रूम सामग्री प्रदाय की गई है।

• अपराध में नियंत्रण :-
पिछले वर्ष के नवम्बर माह से वर्तमान वर्ष अक्टूबर माह तक के आंकड़ों के तुलनात्मक विश्लेषण पर ज्ञात होता है कि पिछले वर्ष की तुलना में कुल भादवि अपराधों में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित हुई है। आवेश में घटित होने वाले अपराध जैसे कि हत्या में 4.45 प्रतिशत की वृद्धि, जबकि हत्या के प्रयास में 12 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। पुलिस मुख्यालय द्वारा सभी जिलों को स्वतंत्र रूप से अपराध पंजीबद्ध करने के निर्देश दिए गए थे जिसके कारण डकैती तथा लूट जैसे सम्पत्ति संबंधी अपराधों में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित हुई है। इसी अवधि में प्रतिबंधक धाराओं के अंतर्गत 12.7 प्रतिशत की एवं लघु अधिनियमों के अंतर्गत 21.4 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित हुई है। वर्ष 2008 के दौरान प्रतिबंधात्मक धाराओं तथा लघु अधिनियमों के अंतर्गत की गई कार्यवाही में राज्य भर में उल्लेखनीय वृद्धि परिलक्षित हुई है जिसके कारण से अपराध नियंत्रण में अपेक्षित परिणाम अर्जित किए गए हैं। वर्ष 2008 में विभिन्न अपराध से संबंधित प्रकरणों में 24 संदिग्ध व्यक्तियों के पोटेZट बनाए गए जिसमें से 01 प्रकरण में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की गई।

नक्सलवाद पर करारा प्रहार :-
प्रदेश के विकास के मार्ग में सबसे बड़े अवरोध तथा लोकतंत्र के शत्रु नक्सलियों पर पुलिस द्वारा भीषण वार किया गया। वर्ष 2008 में 29 दिसम्बर तक नक्सल विरोधी मुहिम के दौरान हुई नक्सली व सुरक्षा बलों के साथ हुई 232 मुठभेड़ों में 67 नक्सलियों को मार गिराया गया एवं 156 नक्सली/404 संघम सदस्यों को गिरफ्तार कर 07 नक्सली कैम्प ध्वस्त किया गया। वर्ष 2008 (29 दिसम्बर तक) में नक्सलियों से भारी मात्रा में हथियार एवं विस्फोटक सामग्री जप्त की गई, जिसमें 01 नग ए.के-47, 02 नग एस.एल.आर., 04 नग 315 बोर रायफल, 06 नग 303 रायफल, 94 नग भरमार बंदूक, 21 नग 12 बोर बंदूक, 94 नग देशी कट्टा, 01 नग 12 बोर कट्टा, 01 नग देशी पिस्टल, 11 नग पिस्टल 04 देशी 2 इंच मोर्टार, 01 आटोमेटिक रायफल, 01 माउजर, 01 देशी स्टेनगन, 315 बोर कट्टा 01 नग, (कुल 244 हथियार) 83 लैण्डमाइंस, 218 डेटोनेटर सहित भारी मात्रा में कारतूस एवं प्रेशर बम, पेट्रोल बम तथा आई.ई.डी 08 नग आदि बरामद किये गये, इससे बौखलाकर नक्सलियों द्वारा हिंसात्मक घटनाए की गई। वर्ष 2008 (29 दिसम्बर तक) प्रदेश में नक्सलियों द्वारा हत्या 141, हत्या के प्रयास 264, डकैती 45, लूट 05, आगजनी 54, मारपीट 03, अपहरण 11 एवं अन्य 147 अपराधिक घटनाएँ कारित की गई जो नक्सलियों की हताशा का घोतक है एवं विगत वर्षों की तुलना में कम है। इस वर्ष विधानसभा चुनाव, पुलिस की सक्रियता से शांतिपूर्ण कराने में सफल रहे। वर्ष 2008 (29 दिसम्बर तक) के दौरान पुलिस बल के 64/16 (SPO) अधिकारियों ने कर्तव्य पथ पर चरम बलिदान कर अपने प्राणों की आहुति दी। वहीं नक्सली हिंसा में 139 आम नागरिकों, 05 अन्य शासकीय कर्मियों तथा 01 गोपनीय सैनिक की भी मृत्यु हुई। इसी मध्य रायपुर भिलाई, दुर्ग, बिलासपुर जैसे गैर नक्सल प्रभावित माने जाने वाले जिलों के सघन शहरी इलाकों में नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को तोड़ने, उनके समर्थक आईलम्मा कल्लवल्ला उर्फ कविता उर्फ संध्या उर्फ मीना चौधरी, मालती उर्फ के.एस. प्रिया उर्फ शांतिप्रिया, असित कुमार सेनगुप्ता को गिरफ्तार कर उनसे 5 लाख रूपये नगद, 5 नग वाहन, 47 नग वाकी टॉकी, 9 नग 9 एमएम पिस्टल, 53 नग 9एमएम पिस्टल के कारतूस, 251 नक्सली वर्दी पेंट, 197 शर्ट, 634 मी. कपड़ा एवं 87 नग देशी पिस्टल जप्त कर उनके आपूर्ति तंत्र को समाप्त करने में कामयाबी हाथ लगी है।

प्रशिक्षण से प्रवीणता :-
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाने हेतु सीटीजेडब्ल्यू वारंगटे, मिजोरम की तर्ज पर प्रशिक्षण दिये जाने हेतु जंगलवार फेयर कॉलेज कांकेर की स्थापना किया जाकर अधिकारी/कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। नवगठित पुलिस अकादमी चंदखुरी में परीक्षाधीन 41 उप पुलिस अधीक्षकों का 1 वर्ष का बुनियादी प्रशिक्षण कराया जा रहा है। वर्ष 2008 में 01.11.2008 तक जिला पुलिस बल के 2605 नव आरक्षकों को विभिन्न प्रशिक्षण शालाओं में प्रशिक्षण दिया गया है। प्रदेश के विभिन्न प्रशिक्षण शालाओं एवं वाहिनियों में 288 महिला आरक्षकों सहित कुल 3278 नव आरक्षकों को बुनियादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

१८ आईपीएस की पदस्थापना में परिवर्तन

रायपुर । राज्य शासन ने आज 31 दिसम्बर को भारतीय पुलिस सेवा के 18 अधिकारियों की नवीन पदस्थापना एवं स्थानांतरण आदेश जारी किया है । नये आदेश के अनुसार श्री अनिल एम.नवानी महानिदेशक छसबल से महानिदेशक होमगार्ड, श्री गिरधारी नायक अतिरिक्त महानिदेशक गुप्तवार्ता एवं प्रशिक्षण से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अपराध अनुसंधान, श्री डी.एम.अवस्थी पुलिस महानिरीक्षक गुप्त वार्ता अपने कार्य के साथ-साथ पुलिस महानिरीक्षक रायपुर, श्री वाय.के.एस.ठाकुर पुलिस महानिरीक्षक रायपुर रेंज से पुलिस महानिरीक्षक, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, श्री आनन्द तिवारी पुलिस महानिरीक्षक, आर्थिक महानिरीक्षक, अपराध अनुसंधान, श्री संजय पिल्लै, सचिव गृह विभाग, छत्तीसगढ़ शासन से अतिरिक्त परिवहन आयुक्त, श्री मुकेश गुप्ता पुलिस महानिरीक्षक, सरगुजा रेंज से पुलिस महानिरीक्षक, दुर्ग रेंज (नया रेंज), श्री अशोक जुनेजा अतिरिक्त परिवहन आयुक्त से सचिव, गृह विभाग, छत्तीसगढ़ शासन, श्री आर.सी.पटेल पुलिस महानिरीक्षक, अजाक, पुलिस मुख्यालय से पुलिस महानिरीक्षक, सरगुजा रेंज, श्री बी.एस. मेरावी अवकाश से लौटने पर पुलिस महानिरीक्षक, अजाक, पुमु, श्री राजेश मिश्रा संचालक, खेल एवं युवा कल्याण से संचालक, लोक अभियोजन, श्री अरुणदेव गौतम, उप पुलिस महानिरीक्षक, मुख्यमंत्री सुरक्षा से उप पुलिस महानिरीक्षक, प्रशासन, श्री जी.पी.सिंह, उप पुलिस महानिरीक्षक, योजना एवं प्रबंधन, पुमु से संचालक, खेल एवं युवा कल्याण, श्री हिमांश गुप्ता, उप पुलिस महानिरीक्षक, अपराध अनुसंधान विभाग अपने कार्य के साथ-साथ उप पुमुनि, योजना एवं प्रबंध बनाया गया है ।
इसी तरह श्री ओमप्रकाश पाल पुलिस अधीक्षक धमतरी से पुलिस अधीक्षक कोरिया, श्रीमती नेहा चम्पावत, पुलिस अधीक्षक कोरिया से पुलिस अधीक्षक धमतरी, श्री एस. के.झा. पुलिस अधीक्षक रेल्वे रायपुर से पुलिस अधीक्षक जांजगीर-चांपा, श्री पी.एस.बारा पुलिस अधीक्षक जांजगीर-चांपा से पुलिस अधीक्षक रेल्वे, रायपुर बनाये गये हैं ।